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________________ जीवामिगमसूत्रे પરફે कमलविशेषः, पद्मं सूर्यविकासि, कुमुदं चन्द्रविकासि, नलिनम् - ईषद्रक्तं पद्मं सुभगं पद्मविशेषः सौगन्धिकं कल्हारम्, पौण्डरीकं सिताम्बुजम् तदेव वृहन्महापौण्डकम, शतपत्रात्रे पद्मविशेषौ पत्रसंख्याकृतभेदौ, एभिः प्रफुल्लै:- विकसितैः केसरेति केसरोपलक्षितै रुपचिता उपचितशोभाका द्वीपसमुद्राः | 'पत्तेयं पत्तेय ' प्रत्येकं प्रत्येकम् एकैको द्वीपः समुद्रश्चेत्यर्थः 'पउमवर वेश्या परिक्खित्ता' पद्मवरवेदिकापरिक्षिप्ताः 'पत्तेयं पत्तेयं दणसंडपरिविखत्ता' प्रत्येकं प्रत्येकं वनपण्डपरिक्षिप्ताः सन्ति, एतादृशा: 'असि तिरिरलोए' अस्मिन् तिर्यग्लोके 'असंखेज्जा दीवमुद्दा सयंभूरमणपञ्जवसाणा' असंख्येया द्वीपसमुद्राः स्वयंभूरमणपर्यवसाना जम्बूद्वीपादयो द्वीपा स्वयंभूरमणद्वीपपर्यवसाना, लवणसमुद्रादयः समुद्राः स्वयंभूरमणसमुद्रपर्यवसानाः, 'पण्णत्ता समणाउसो !' मज्ञप्ताः कथिताः हे श्रमण ! नलिनों से पत्रों से सुभगों से पद्मविशेषों से सौगन्धिकों से विशेष प्रकार के कमलों से पौण्डरीकों से सफेद कमलों से वडे २ पुण्डरीकों से शतपत्र वाले कमलों से और सहस्रपत्रों वाले कमलों से ये द्वीप और समुद्र सदा उपचित शोभावाले बने रहते है । 'पत्तेयं पत्तय परमवर वेड्या परिक्खित्ता' ये प्रत्येक द्वीप और समुद्र पद्मवरवेदिका से घिरे हुए है 'पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता' ये प्रत्येक वनखण्ड से विढे हुए है - 'असि तिरियलोए असंखिज्जा दीवसमुद्दा सयंभूरमणपज्जवसाणा पण्णत्ता समणाउसो' हे श्रमण आयुष्मन् इस तिर्यग्लोक में ऐसे ये द्वीप एवं अन्तिम समुद्र स्वयंभूरम गदोपतक और अन्तिम स्वयंभूरमण समुद्र तक असंख्यात है । ' अस्सि तिरियलोए' इस सूत्रपाठ द्वारा द्वीपसमुद्रों का स्थान सूत्रकारने प्रकट किया है 'असंखेज्जा' નલિનાથી પત્રાથી, સુભગેથી પદ્મવિશેષ થી સૌગન્ધિકાથી વિશેષ પ્રકારના કમળાથી પૌડરીક સફેદ કમળેાથી મેટામેટા પૌરિકાથી શતપત્ર સાપાંખડીવાળા કમળેથી અને હજાર પાખડીવાળા કમળેાથી એ દ્વીપ અને સમુદ્ર સદા શાલાય भान थता रहे छे. 'पत्तेय' पत्तेय' परमवरवेइया परिक्खित्ता' मा हरे४ द्वीप भने समुद्रः पद्मवर वेद्विभथी घेरायेला हे. 'पत्तेय पत्तेय'वणस' डपरिक्खित्ता' || हरे द्वीप समुद्र वनमाउथी घेरायेला छे. 'अस्थि' तिरियलोप अस खिन्जा दीवसमुद्दा सयं भूरमणपज्जवखाणा पण्णत्ता समणाउसो' हे श्रमायु आयुष्भन् આ તિય Àાકમાં એવા આ દ્વીપ અને અતિમ સમુદ્રો સ્વયંભૂરમણુ દ્વીપ पर्यन्त रमते अंतिम स्वयंभूरमधु समुद्र पर्यन्त असख्यात छे. 'अस्मि तिरियलोए' मा सूत्रपाठ द्वारा द्वीप समुद्रो स्थान सूत्रभरे अगर रेल है. ‘अस्र खेज्जा' मा सूत्रपाठ द्वारा द्वीप समुद्रोनी सध्या प्रगट रेल छे. 'दुगुणा
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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