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________________ प्रद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ ७.४९ वानव्यतरदेवानां भवनादिकम् काळस्य खलु पिशाचकुपारेन्द्ररूप पिशाचकुमारराजस्य 'अमरियाए परिसाए' आभ्यन्तरिकायाम् ईशाभिधानायां पर्पादि- उमायाम् 'देवाणं अद्धपलिओदमं ठिई पनचा' देवानामर्द्धपल्योपमं स्थितिः प्रज्ञता, तथा - 'मझियाए परिसाए देवाणं' माध्यमिकायां पर्षदि देवानाम् ' देणं अद्धपलिओक्लं ठिई पनचा' देशोन देश परिहीणम् अर्द्ध पल्योपमं स्थितिः प्रज्ञप्ता, तथा - 'बाहिरियार परिसाए देवाणं' बाहूयायां पर्षदि देवानाम् 'साइरेगं चउमागपळिओवमं ठिई पन्नत्ता' सातिरेकं चतुर्भागपल्योपमं स्थितिः प्रज्ञप्ता, एवमू - 'अभितरियाए परिसाए देवीनं' एत्रसू आन्तरिकायां पर्षद देवीनाम् 'साइरेगं चउभागपलिओचमं ठिई पण्णत्ता' सातिरेकं चतुर्भागपलयोपमं स्थितिः भज्ञता, तथा 'सज्झिमियाए परिसाए देवीणं' माध्यमिकायां पर्षद देवीनाम् 'चउमागपलिओदनं ठिई पन्नत्त' चतुर्थी पल्योपमं स्थितिः प्रज्ञप्ता, 'बाहिरियाए परिसाए देवीण' बाहूयायां पदि देवीनाम् 'देणं उत्तर में प्रभुश्री कहते है 'गोमा !' फालहम णं पिसायकुमारिंदस्स पिसायकुमाररण्णो विभतविधाएं परिसाए देवाणं अपलिओदनं ठिई पन्नता' हे गौतम | पिशाच कुमारेन्द्र पिशाचाजकालको आभ्यन्तर परिपदा के देवों की स्थिति बध्यमान आयु बाधेवल्योपमकी कही गई है । 'मज्झिमयाए परिसाए देसूणं अद्धपलिमोनं ठिई पन्नत्ता' मध्यमिका परिषदा के देवों की स्थिति कुछ कम आधे पल्योपनकी कही गई है और 'बाहिरिया परिसाए देवाणं सारेगं मागपलिओदनं ठिई पन्नत्त।' बाह्यपरिषद के देवों की स्थिति कुछ अधिक पलके बतुर्थभागप्रमाण कही गई है। इसी प्रकार 'अतिरियाए परिसाए देवी णं' इत्यादि आभ्यन्तर परिषद की देवियों की स्थिति सातिरेक चतुर्भाग रल्योपम की हैं मध्यपरिषदा की देवियों की स्थिति चतुर्भाग पल्पोपनकी कही अलुश्री गौतमस्वाभाने छे 'गोयमा ! कालरस ण विद्यायकुमारिदस्ख पिसायकुमाररण्णो अतरियाए परिसाए देवाण अद्धपलिभोत्रम' ठिई पण्णत्ता' હૈ ગૌતમ ( પિશાચ કુમારેન્દ્ર પિશાચ કુમારરાજ કાલ ઇન્દ્રની આભ્ય તર પરિષદાના દેવાની સ્થિતિ મધ્યમાન અ યુ અર્ધાપલ્યાપમની કહેવામા આવી છે. 'मज्झमिया परिसाए देसूणं अद्धपलिओम ठिई पण्णत्ता' मध्यमा परिषदाना देवानी स्थिति गोछी अर्धा पत्येोयभनी भने 'बाहिरियाए परिसाए देवाण साइरेगं चउभागपलिओम ठिई पण्णत्ता मा परिषहाना हेवोनी स्थिति કંઈક વધારે પલ્યના ચેાથા ભાગ પ્રમાણુ કહેલ છે એજ પ્રમાણે ‘અશ્મિ' तरिया परिसाए देवीण" इत्याहि माम्यन्तर परिषहानी हेवियानी स्थिति सानि રેક કંઈક વધારે ચતુર્થાંગ પુલ્ચાપમની છે, મધ્યમા પરિષદાની દૈવિયેાની સ્થિતિ
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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