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________________ प्रमैयद्योतिका टीका प्र.२ उ. ३ खू.४६ देवस्वरूपवर्णनम् ७३३ मर्द्ध तृतीयानि पत्योषमानि अर्धाधिकानि द्विपल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता, तथा 'मझिमिया परिसाए' माध्यमिकायां चण्डाभिधानायां पर्षद 'देवाणं दो पलिओ माई ठिई पन्नता' देवानां द्वे पल्योपमे - पल्योपमद्वयं यावत् स्थितिः मज्ञप्ता, तथा - 'बाहिरियाए परिसाए' बाह्यायां जाताभिधानायां पर्पदि देवगणं दीवÇ पलिओोरमं ठिई पन्नता' देवानां द्वच सार्द्धकै पल्योपमं यावत् स्थितिः प्रज्ञप्ता, 'अपिरियार परिसाए देवीणं दीवहूं पलिओम' आभ्यन्तरकाय देवनां द्वय पल्योपमं स्थितिः प्रज्ञाः तथा - 'मज्झिमि - या परिसाए देवीणं पलियोषमं ठिई पन्नत्ता' माध्यमिकायां पर्पदि देवीनां पल्थोपमं यावत् स्थितिः मज्ञा, बाहिरियाए परिसाए देवीणं अद्धपलिओम' ठिई पत्ता' वाह्यायां जाताभिधानायां पर्षदि देवीनामर्द्ध पल्योप यादव स्थितिः प्रज्ञा कथितेति भगवत उत्तरमिति ॥ सम्पति - आभ्यन्त रिकादि व्यपदेशकाri fuपृच्छिषु रिदमाह - ' से केण ेणं ते! एवं बुच्च ' अथ केनार्थेन केन कारणेन भदन्त ! एव मुच्यते - 'चपररस असुर्रिदस्स असुररन्नो अढाइ पल्पोपन की कही गई है 'मज्ज्ञिमियाए परिसाए देवाणं दो पलि ओवनाई ठिई पला' मध्यमपरिषदा के देवों की स्थिति दो पल्वोपय की कही गई है और 'बाहिरियाए परिसाए देवाणं दीवडू पलिओ मं ठिई पण्णा' बाह्य परिषदा के देखों की स्थिति डेढ १ || पल्ोपन की कही गई है 'भरियाए परिसाए देवीणं दीप पलिओदनं' तथा आभ्यन्तर परिषदा की देवियों की स्थिलि डेढ १॥ पयोम की कही गई है 'मझिमियाए परिसाए देवीणं पलिभोपलं टिई पण्णत्ता' यध्यमा परिषदा की देवियों की स्थिति एक पत्घोषम की कही गई है। 'बाहिरिया परिसाए देवीगं अद्धपलि ओपमं' और बाह्य परिषदा की देवियों की स्थिति आधे पत्थोपम की कही गई है। 'से केहेणं संते ! एवं बुच्चए ' हे भदन्त ! ऐसा आप किस पारण से कहते है कि 'चमरस असुरिं न्तर सलाना हेवेनी स्थिति पढि पयोषन वामां आवे छे. 'मज्झ मियाए परिसाए देवाणं दो पलिओमाई ठिई पन्नत्ता' मध्य परिषद्वाना हेवानी स्थिति मे पहएभनी उस छे भने 'बाहिरियाए परिवार देवाणं दीवड्ढ पलिओम ठिई पण्णत्ता' बाह्य परिवहाना हेवेनी स्थिति ॥ होढ पस्योपभनी अडेस छे. 'अभितरियाए परिसार देवीण दीवड्ढ पलिओक्स' तथा आभ्यन्तर परिषहानी देवियोनी स्थिति ॥ होट पहनोमनी डे छे. 'मज्झिमियाए परिसाए देवी पलिओम' मध्यम परिषहनी हेवियानी स्थिति मे पस्यो भनी हे छे. 'बाहिरियाए परिवाप देवीण अद्ध पलिओम' भने माघ परिषहानी देवियोनी स्थिति अर्धा यहयोयमनी डेस छे. 'से केणदृणं भवे ! एव' वुच्चइ' हे भगवन्! आप मे शा हारथी उसे 'मरस अ
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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