SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 648
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२४ जीवामिगम स यथा नामकः 'चाउरत चक्क टिम्स' चातुरन्तचक्रवर्तिनः चतुषु अन्तेपु समुद्र त्रय हिमवद परिच्छिानेषु चक्रे ग-चक्रवत्सर्वतः समन्ताद् वर्तितुं शीलं यस्य स तथा तस्य 'कल्लाणे पबरसोरणे' कल्याणकान्त सुखावह मवरभोजन-विशिष्ट भोजन सय सहस्स निष्फन्ने' शतसहस्र निष्पन्नम् लक्षगोक्षीरसंपादितम्, तथाहिचक्रपत्नि सम्बन्धि नीनां-पुण्ड्रेक्षुचारिणीनामनातवानां गवां लक्षस्य याक्षीर तस्य पश्चाशत्सहस्र गोयः पानं दोयते एवम द्धक्रमेण पीतगोक्षीराणां गवां पर्यन्ते यावदेशस्याः गोः सम्बन्धि यत् क्षीर तत्माप्तकलमशाल परमान्नरूपमनेकसंस्का. एक द्रव्यसमिश्र यद् भोजनंवर पाल्पाणवर भोजनं पथरते, तद् यादृशास्वादक मवेत ताशास्व'दोपेतम् पुलस्तत् कीदृशम् ? इत्पाह-'वष्णेणं उववेए' वर्णेनाति शायिना शुक्लेनोपपेतं युक्तम् 'गंधेणं अवः' गधेनातिशायिना सुरमिनोपते -गोयमा! ले जहा नामए चाउरंत पावहिस्ल कल्लाणे पवर. ओयणे सतलहाल निष्फन्ने चणेणं उदए गंघेणं उदए, रसेण उधघेए फाणं उबवेए' जैसा चातुरन्त चक्रवर्ती क्षा भोजन जो कल्याण भोजन के नाम से प्रसिद्ध है यह चक्रवती का कल्याण भोजन इस प्रकार होता है-चक्रवर्ती की ही गाये हों और वे पुण्ड जाति के उत्तम इक्षु को चरने वाली हो शरीर में नीरोग हो वैसी एक लाख गायों का दूध पचाल हजार गायों को पिलाया जाये, और पचास हजार गायों का दुध पचील हजार गायों को पिलावे इस तरह से आधी गायों को पिलाने के क्रम से वैसे दूध को पी हुई गायों के अन्तिम श्री एकनाथ का जो दूध को उम दूध भी बनाई हुई खीर जिसमें अनेक प्रकार के मेंवे आदि संस्कारक द्रव्य डाले गये हों वह कल्याण प्रवर भोजन चक्रवर्ती का कहलाता है वह वर्ण शुक्लवर्ण से गन्ध से सुरभिगन्ध से रस से मधुरादि रस से, स्पर्श से मृदृग्निपवर भोयणे सत्तसहस्स निष्कन्ने वण्णेण उत्रवेए गधेणं उचए रसेणं उववेए फासेणं उरवेए' भयातुरंत यति सानुमान २ ध्याएनना નામથી પ્રસિદ્ધ છે. ચક્રવર્તિ રાજાનું તે કલ્યાણ ભોજન આ રીતે બને છે. ચક્રવત્તિની જ ગાયે હોય, અને તે પુંડ્ર જાતીની ઉત્તમ શેલડીને ચરવાવાળી હોય, શરીરથી નિગી હેય, એવી એક લાખ ગાયોનું દૂધ પચાસ હજાર ગાને પીવરાવવામાં આવે, પચાસ હજાર ગાયનું દૂધ પચીસ હજાર ગાને પીવરાવવામાં આવે, આ રીતે અધિ અધિ ગાને ક્રમથી દૂધ પીવરાવતાં પીવરાવતાં એવી રીતે દૂધને પીનારી છેવટની એક ગાયનું જે દુધ હોય છે એ દૂધથી બનાવેલ દૂધપાઠ કે જેમાં અનેક પ્રકારના મેવા વિગેરે સંસ્કાર વાળા પદાર્થો નાખવામાં આવ્યા હોય તે ચફેવતિ રાજાનું
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy