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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.३८ एकोहक मनुजीवानामाकारादिकम् ६०७ यासां तास्तथा, 'कणवीरमु उल अकुडिल अब्भुग्गतउज्जुतुंग णासा' करवीरमुकुला-कुटिलाभ्युद्गत ऋजुतुङ्गनासाः, तत्र-करवीरघुकुलं-इणिकार कलिका तद्वत् अकुटिला अवका अभ्युद्गता उपयुत्थिता ऋज्वी सरला सती तुङ्गा-तीक्ष्णा एवंविधा नासा यासा तास्तथा, 'सारदणवकमलकुमुदकुवलय विमुक्कदलणिगर सरिसलक्खण अंकियकंतणयणा' शारदनबकमलकुमुदकुवलय विमुक्तदलनिकर सदृश लक्षणाङ्कितकान्तनयनाः तत्र-शरदि भवं शारदं नवनवीनं कमळ सूर्यविकासि. हमदं चन्द्रविकासि कुवलयं नीलोत्पलं एतेषां यो विमुक्त पृथग्मृतो दलनिकरः पत्र समुदाय स्तत्सदृशे लक्षणाङ्कित आयतदीर्घ-शुभलक्षणयुक्ते अतएव कान्ते मनोज्ञे नयने-नेत्रे यास तास्तथा, 'पत्तलचवलायय तंबलोयणाभो' पलचपला. यमान ताम्रलोचना:, पत्रले-पक्ष्मले चपलायमाने चापल्ययुक्ते ताने ईपन कते दिखाई देते हैं । 'सुदरोत्तरोटा' ऊपर का होठ भी इनका बडा सुहा. बना होता 'दधिदगरय चंद कुंदवासंति भउल अच्छिद्द विमतदसणा' इनके दाँत दधिके जैसे शुभ्र होते हैं, पानी के कण जैसे निर्मल होते हैं चन्द्र के जैसे अकलङ्क होते हैं कुन्द पुष्प के जैसे लफेद होते हैं, वासन्ती कली की तरह शुन्न होते हैं बीच में इनकी पतियां छेद विहीन होती है अतएव इनमें अत्यन्त धवलता रहती है 'रचप्पलपत्त मउय सुकुमालतालु जीहा' इनके तालु और जिह्ना ये दोनों रक्त कमल के पत्र की तरह लाल होते हैं, मृदु नरम होते हैं, और विशेष सु. मार होते हैं 'कणवीर मुउल अकुडिल अब्भुग्गत उज्जुतुंगणासा' पनकी नासिका कनेर की कली के जैसी होती है अकुटिल-सीधी होती है डेढि नहीं होती है अग्रभाग में प्रमाणानुसार कुछ २, ऊंची उठी हुई અને આકુંચિત કંઈક કંઈક વળેલા હોય છે. તેથી જ તેઓ દેખવામાં ઘણાજ सु२ माय छे. संदरोत्तरोद।' तमना उपना 18५९घान साहामाया डाय छे. 'दधिदगरय चंदकुंद वासंति मरल अच्छिद्द विमल दसणा' तयाना हाती દહિના જેવા સફેદ હોય છે. પાણીના બિંદુ જેવા નિર્મળ હોય છે. ચંદ્રની જેમ નિષ્કલંક હોય છે. કદ પુષ્પની જેમ સફેદ હોય છે. વાસન્તીની કળીની જેમ ધવલ હોય છે. તેની પંક્તિ વચમાં દેદ વગરની હોય છે. તેથી જ તેમાં भत्यात श्वेतपान २९ छे. 'रत्तुप्पल पत्तमउय सुकुमाल तालुजीहा' तेमना ताg અને જીભ એ બેઉ લાલ કમળના પાનની માફક લાલ હોય છે. મૃદુ કહેતાં नरम हाय छे. मन विशेष सुमार हाय छे. 'कणवीर मुउल अकुडिल अन्मु. गय सज्जुतुगणाम्रा' तेमनी नासिर ३सुनी जीना पाय छ, भटिस
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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