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________________ ५८८ जीवामिगमस्त्र योदि गुगोपपेता इत्यर्थः, सुजायमुविमत्तमुरूवगा' सुजात मुविभक्त मुरूपकाः, सुजातं-मुनिष्पन्नं जन्मदोषरहितत्वात्, मुविभक्तम्-अगमत्यगोपाङ्गानां यथा स्थान स्थितत्वात् मुरूपं समुदायगतं येषां ते तथा। 'पासाईया' प्रसादिकाः 'दरिसणिज्जा' दर्शनीयाः, 'अभिरूवा' अभिरूपाः, 'पडिरूपा' मतिरूपा इति । ते मणुया इंसस्सरा' ते-एकोरुकद्वीपकाः खलु मनुजाः हंसस्वराः, इंसस्य पक्षिविशेषस्य स्वरवत् मधुरः स्वर:-शब्दो येषां ते हंसस्वराः, 'कोच. स्सरा' क्रोश्चस्वरा:-क्रौञ्चाभिधपक्षिशब्द सदृशशब्दवन्तः अनायास विनिर्गतस्यापि स्वरस्य दीर्घदेशव्यापित्वात् 'नंदिघोसा' नन्दिघोषा:-नन्दिर्नामद्वादशविधवाद्य. विशेषसंमिश्रितस्वर सदृशस्वरयुक्तो वाधविशेषः, तद्वत् घोपो ध्वनिर्यपां ते नन्दि. घोषाः, 'सीहस्सरा' सिंहस्वराः 'सीहघोसा' सिंहघोपाः 'मंजुस्सरा मंजुघोसा' क्षान्ति आदि सद्गुणों से युक्त होते है। 'सुजाय सुविभत्त सुरुवगा पासाईयो दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा' उनका रूप बड़ा ही अच्छा स्वरूप वाला होता है क्योंकि उसके प्रत्येक अवयव जन्म जात अपने२, पूर्ण प्रमाण से युक्त होते हैं ये प्रासादिक होते हैं दर्शनीय होते हैं अभि. रूप होते हैं और प्रतिरूप होते हैं 'तेणं मणुया हंसस्सरा, कोचस्सरा, नंदिधोसा, सीहस्सरा, सीह घोसा, मंजुस्तरा, मंजुघोसा, सुस्सरा, सुस्सरणिग्घोसा छाया उज्जोतियंगमंगा' ये मनुष्य हंस के स्वर जैसे स्वर वाले होते हैं क्रौंच पक्षी के स्वर जैसे अनायास निकलने पर भी दीर्घ देश व्यापी स्वर वाले होते हैं नंदिके घोष-गर्जना वाले होते हैं अर्थात् यह नन्दि-बारह प्रकार के वाद्य विशेषों का जैसा संमिश्रित स्वर होता है उस प्रकार के वाद्य विशेष कानास नन्दि है उसके जैसी ध्वनि वाले सिंह के स्वर जैसे गंभीर स्वर वाले होते हैं सिंह के जैसे घोषहाय छे. 'सुजायसुविभत्तसुरूवगा, पासाईयो दरिसणिज्जा अभिरुवा पष्टिरूवा' त्यानु રૂપ ઘણું જ સુંદર સ્વરૂપવાળું હોય છે. કેમકે તેમના દરેક અવયવ જન્મથીજ પિત પિતાના પૂર્ણ પ્રમાણુથી યુક્ત હોય છે. તે બધા પ્રાસાદીય હોય છે. દર્શનીય हाय छे. अभि३५ .य छ भने प्रति३५ डाय छे. 'तेणं मणुया हसस्सरा, कांचमग नदिघोसा, सीहस्सरा, सीह घोसा मजुस्सरा, मजुघोसा, सुरसरा, सुस्सरणिग्धोंसा, छोया उज्जोतियगमगा' मा मनुष्य। सना २१२ २१॥ २१२ વાળા હોય છે. કૌચક્ષિના સ્વરની જેમ અનાયાસ નીકળવા છતાં પણ દીધું દેશવ્યાપી સ્વરવાળા હોય છે. નંદિના ઘેષ જેવા ઘેષ ગર્જનાવાળા હોય છે. અર્થાત તે નદિ કહેતાં બાર પ્રકારના વાઘવિશેષનું નામ નંદિ છે. તેના જેવા વિનિવાળા, સિંહના સ્વર જેવા ગંભીર સ્વર વાળા હોય છે. સિંહના જેવા
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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