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________________ जीवाभिगमसूत्र धन्त इत्यर्थः 'सुइकाणा' शुचिकरणा:-शुचीनि पवित्राणि निरूपछेपस्वाद करणानि इन्द्रिाणि येषां ते ज्या, 'रम्ह वियडणाभा' पदाविकटनामया-पद्म-कमलं तद्वत सदाकारा विकटा-विशाळा नाभिर्येपां ते तथा 'सण्णयपामा' सन्नतपार्धा, सम्यक् क्रमेण अधेऽधः नते पायें येषां ते तया, 'संगतपासा' संगतपा:सङ्गते-देहपमाणोचिते पायें येषां ते तया, अतएव 'संदरपासा' सुन्दरपार्धाः 'मुनातपासा' सुजातपा:-जन्मजातसुन्दरपाश्र्वाः 'मियमाइय पीणरतिय. पासा' मितमात्रिकपीनरतिदप,वाः, मिते-परिमिते मात्रिके मात्रया उपेते अन्यूनाधिके पौने-उपचिते रतिदे-आनन्दप्रदे पावें येषां ते तथा, 'अकरंड्यकणगरुयगनिम्मल सुजाय निरुवहयदेहधारी' अकरण्इककनकरुवा निर्मळ मनात निरुाहतदेहधारिणः, तत्र अविद्यमानं मांसलत्वेन अनुपलक्ष्यमाणं करण्डुकं पृष्ट. जैसी सुजात-सुन्दर और पुष्ट होती है 'झसोदरा' इनका उदर मत्स्य के उदर जैप्ता क्रश होता है 'सुकरणा' इनके करण अर्थात् इन्द्रियां पवित्र और निर्लिप्त होते है पम्हवियडणाभी' इनकी नाभिकमल के जैमी विशाल होती है 'सणघपासा' अच्छे रूप में क्रमशः इनके दोनों पार्थ भाग नीचे २, नत-झुके हुए होते हैं। 'संगतपासा' और वे देह प्रमाण उपचित-पुष्ट-होते हैं अतएव 'सुदर पाला' वे दोनो पार्श्वभाग इनके बडे सुहावने लगते हैं। 'सुजातपासा' इसी कारण वे सुजात जन्म से ही सुन्दर पाच वाले कहे गये हैं। मितमाझ्य पीणरतियपामा' और इसी कारण वे उनके दोनों पाच भाग परिमित न कमती न बढती किन्तु मात्रोपेत, पुष्ट एवं आनन्द दाधक वर्णित किये गये हैं। 'अकड. यकणगरूयग निम्मलसुजाय निरूवय देहधारी' वे ऐसे देह के धारी होते पीणकुच्छी' Yक्षी ४३i घटना ५४मान मातमना अष नामनी माछवीना भने ५क्षीन। ये वो सुनत सुंदर भने पुष्ट डाय छे. 'जसोदरा' तभनु पेट भासीना पेट व श यातणु डाय छे. 'सुइकरणा' तमना २५ अर्थात् छद्रियो सत्यत पवित्र भने निति डाय छे. 'पम्हा वियड़णामी' भनी नामी भजन व विशाल डाय छे. 'सण्णयपासा' भश तमना मन्त्र पाश्वमा नीय नाय ना लाय छे 'संगतपासा' भने ते हेड प्रभाए पथित नाम पुष्ट डाय छे 'सुंदरपासा' ते मे 341वभाग-५७॥ घास सुह२ डाय छे. 'सजातपासा' या १२ तसे सुनत अर्थात् मथीसु२ ५४ावा ४ामा मावेश छ मितमाइय पीणरतियपासा' मने ४ ४२ तमानाय भन्न पावભાગે પરિમિત હોય છે એ છાવત્તાં હોતા નથી પરંતુ પ્રમાણે પત, પુષ્ટ અને मानहाय पान ४ामा सावेत छे 'अकरुंडुय कणगल्यगनिम्मल सुजाय निम्बय देहधारी' तो मेवा शरीरने धारण १२वावाणा हाय छे मना
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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