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________________ प्रमैयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ २.३६ एकोषकद्वीपस्थितद्रुमगणवर्णनन् ५६५ वरपत्तनं तत्तत् प्रसिद्धपत्तनं तस्मादुद्गताः-विनिर्गताः 'वण्णरागकलिया' वर्ण रागकलिताः वणरनेकैमंजिष्ठादिभिः कलिताः युक्ता', 'तहेव से अणियणावि दुमगणा' तथैव ते अनग्ना अपि द्रुपगणा:-कल्पवृक्षाः 'अणेगबहुविविहवोसला परिणयाए वत्थविहीए उववेया' अनेकवहुविविधविस्रसापरिणवेन वस्त्रविधिनोपेता:'कुपविकुस वि० जाव चिट्ठति' कुशविकुश विशुद्ध वृक्षमूला यावत् तिष्ठन्तीति ।३६। ____ मूलम्-एगोरुय दीवेणं भंते ! दीवे मणुयाणं केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा! तेणं मणुया अणुवमतर सोमचारुरूवा भोगुत्तमगयलक्खणा भोगसस्लिरीया सुजाय सव्वंगसुंदरंगा सुपइट्रियकुम्मचारुचलणा रत्तुप्पलपत्तम उयसुकु. मालकोमलतला नगनगरसागरमगर चर्ककबरंकलक्खणंकिय चलणा अणुपुत्वसुसाहतंगुलीया उण्णयतणुतंबणिद्धणखा संठियसुसिलिगूढगुप्फा एगीकुरुविंदाकतवट्टाणुपुत्वजंवा समुग्गणिमग्गगूढ जाणू गयससणसुजायसपिणभोरू वरवारणमत्ततल्लविक्कमविलासियगई सुजायवरतुरगगुज्झदेसा आइण्णभिन्न २, देशों में वहां की संस्कृति के अनुसार इनका निर्माण होता 'यणरापलिया' तथा मंजिष्ठादि रंगों से ये जैसे भिन्न २ देश की पद्धति के अनुसार रंगे होते हैं 'तहेच ते अणियणा वि दुमणा' इसी प्रकार से णे अनग्न नाम के कल्पवृक्ष भी 'अणेग यहु विविधीससा परिणयाए वस्यविहीए उववेया' अनेक बहुत प्रकार की स्वाभाविक वस्त्र, विधि से परिणत होते हैं 'कुस विकुस' इत्यादि, पदों का अर्थ पूर्वोक्त जैसा ही है सूत्र-३६।। ।। २ना हाय छ, भने 'वरपट्टणुग्गया' श्रेष्ठ पत्तनथी अर्थात् नु । शाम त्यांनी त्यांनी संस्कृती प्रमाणे तेनु निर्माणु थाय छे. 'वण्णरागकलिया' તથા મંજીષ્ઠાદિ રંગથી જેમ જૂદા જૂદા દેશની પદ્ધતિ અનુસાર રંગવામાં मावेस डाय छे. 'तहेव ते अणियणा वि दुमगणा' ते प्रमाणे मा मनन नाना ४६५वृक्षा ५ 'अणेग बहु विविहवीस सापरिणयाए वत्यविहीए उववेया' भने ५२नी स्वाभावि पर विधिथी परिशुत डाय छे. 'कुसविकुस' त्यहि पहानेम पडai sil प्रभार सभval. ॥ सू. 360
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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