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________________ प्रमेयधोतिकाटीका प्र.३ ३.३.३६ एकोषकद्वीपस्थितमगणवर्णनम् ५५९ रहितं शिखरादि रहित हय॑म् ! 'अहवणं धवलहर अद्धमागहक्किममसेलद्ध सेलसंठिय कूडागारसुविहिकोढग अणेगघरसरणलेण आवण डिगजालविंदणि. ज्जूह अवचरक दोबारिय-चंदसालियरूवविभत्ति कलिया' अथवा खलु धरलगृहार्द्ध मागविभ्रमशैला शैलसंस्थित कुटाकाराढय सुविधिकोष्ठकानेक गृहसरणलयन. आपण विडंकजालवृन्द निव्यूहापवर कदौवारिक चन्द्रशालिकारूपत्रिभक्ति कलिताः तत्र-धवलगृहं सौधम्, अर्धमागध विभ्रमाणि गृहविशेषाः, शैलाचशेल संस्थितानि उसका नाम नन्दिका वर्त गृह है जिसकी नीचे की भूमि शुभ्र हो और ऊपर जिस पर छान-छप्पर न हो ऐले आंगन वाले घर का नाम पाण्डु रतल मुण्ड माल गृह है धनिक जनों के रहने के मकान का नाम हर्य है 'अहव णं धवलहर अद्धमागह विभम खेलद्ध खेल संठिध कूडा. गारड सुविहिकोहा अणेग घरसरणलेण आक्षण विडंग जालविंद णिज्जूह अवरक दोबारिश चंद सालिग रूवा विभत्ति कलिया अवण विहिबहु विकप्पा' धवलगृह-सौध अर्धगृह मागधगृह एवं विभ्रमगृह, शैलार्धगृह, शैल संस्थितगृह, कूडाकार गृह, सुविधि कोष्टक गृह, शरण लयन आपण, इत्यादि रूप से भवनों के खेद अनेक होते है. इनमें अर्ध गृह मागध गृह और विभ्रम गृह ये कोई विशेष प्रकार के घर होते है पहाड़ के अर्ध भाग का जैसा आकार होता है इस आकार का को घर होता है उसका नाम शैलाद्ध गृह है तथा पर्वत का जैसा आकार होता है इस आकार का जो घर होता है वह शैल संस्थिन સ્વરિતકના જેવું છે ઘર હોય તેનું નામ નંદિકાવર્તગ્રહ કહેવાય છે જેની નીચેની ભૂમિ શુદ્ધ હોય અને જેની ઉપર છાજ-છાપરૂ. ન હોય એવા આંગણું વાળા ઘરનું નામ પાંડુરૂલ મંડમાલ ગૃહ કહેવાય છે. ધનવાનને રહેવાના महाननु नाम 'भ्य' छे. 'अहव णं धवलइर अद्धमागह विभम सेलद्धसेल सठिय कूडागारद्वसुविहिकोढग अणेगघरसरणलेण अविण विंडंग जालविदणिज्जूह अवरक दोवारिय चंदसालिय स्व विभत्तिकलिया भवणविहि बहुविकप्पा' पसગૃહ સૌધ, અર્ધગ્રહ માગધગૃહ અને વિભ્રમગૃહ, શૈલાર્ધગૃહ, શિલ સંસ્થિતગૃહ કૃડાકારઘર, સુવિધિbષ્ટકઘર, અનેગૃહ, શરણુલયન, આપણ વિગેરે પ્રકારથી ભવનેના અનેક ભેદો હોય છે. તેમાં અર્ધગૃહ, માગધગૃડ, અને વિભ્રમગૃહ આ કેઈ વિશેષ પ્રકારના ઘર હોય છે. પહાડના અર્ધભાગને જે આકાર હોય છે, એ આકારનું જે ઘર હોય છે, તેનું નામ શૈલાઈઝૂડ છે. તથા પર્વતને જે આકાર હોય છે, તેવા આકારનું જે ઘર હોય છે, તે શિલ
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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