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________________ ५२८ भीमाभिगम न्तीति भावः। 'अन्नमान-समोगाहाहि लेस्साहि' अन्योऽन्य समयगादाभिलेश्यामि सहितास्ते वृक्षाः 'साए पभाए सपएसे सम्बो समंता ओमासंति' ते वृक्षाः स्वकीयया प्रभया स्वमदेशान् सर्वतः सर्वासु दिक्षु समन्ताद सामस्त्येन अवमासन्ते 'उज्जोउ ति पभासे ति उद्योतन्ते सभासन्ते 'कुसक्कुिप्त वि जाव चिटुंति' कुशविकुश विशुद्ध वृक्षमूला यावत् मूलकन्दादिमन्तः प्रासदीया दर्शनीया अमि. रूपाः पतिरूपस्तिष्ठन्तीति, व्याख्यानं पूर्ववदेव ज्ञातव्यमिति ५॥ मू० ॥३५॥ मूलम् -एगोरुय दीवे तत्थ २ वहवे चित्तंगा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो! जहा से पेच्छाघरे विचित्ते रम्मे वरकुसुमदाममालुज्जले भालंत मुक्कपुप्फपुंजोवयारकलिए विरल्लि विचित्त मल्लसिरिदाममल्लसिरि समुदयप्पगम्भे गंथिम वेढिम प्ररिम संघाइमेण मल्लेण छेयसिप्पियं विभागरइएण सव्वओ चेव समणुबद्ध पविरललंबंत विप्पइट्ठहिं पंचवण्णेहि कुसुमदामहिं सोभमाणेहिं लोभलाणे वणमालकयगाए चेव दिप्पमाणे तहेव ते चित्तंगया वि दुमगणा अणेगवहुविविह वीससा परिणयाए मल्लविहीए उववेया कुपविकुलविसुद्ध जाव चिटुंति६। एगोस्य स्थान पर अचल रहते हैं 'अन मन्न समोगाढाहिं लेस्साहि साए पभाए सपदेसे सम्वो लमंता ओभासेंति' एक दूसरे में समाये हुए अपने प्रकाश द्वारा ये अपने प्रदेश में रहे हुए पदार्थो को सय दिशाओं में सम्पूर्ण रूप से प्रकाशित करते हैं 'कुल विकुस जाप चिट्ठति' इन पदों का व्याख्यान पूर्व के ही जैसा है। तात्पर्य यही है कि जैसे ये प्रकाश शील पदार्थ विविध प्रकार के हैं सभी प्रकार से ज्योतिषिक नामक कल्पवृक्ष भी अनेक प्रकार के हैं। सूत्र ३५॥ प्रमाणे मा ५४ पोताना स्थान ५२ सय २७ छे. 'अन्नमन्नसमोगाढाहि लेस्साहि साए पभाए सपदेसे सव्वओ समता ओभासेति' से, मीतमा સમાવેલા પિતાના પ્રકાશ દ્વારા આ પિતાના પ્રદેશમાં રહેલા પદાર્થોને બધીજ त२५थी गधा हिशयामा सपू पाथी प्रशित ४२ छ. 'कुस विकुसजाव चिति' मा ५होना म ५सा हा प्रभाग छ वानु तात्पर्य सका છે કે જેમ આ પ્રકાશશીલ પદાર્થ અનેક પ્રકારના હોય છે, એજ પ્રમાણે આ જાતિક નામના ક૫ વૃક્ષ પણ અનેક પ્રકારના છે. સૂ. ૩પા
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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