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________________ प्रमेययोतिका टीका प्र.३ उ.३ ६.३४ एकोलकद्वीपस्थाकारादिनिरूपणम् ५१३ तत्थ बहवे रुक्खा' एको कद्वीपे खलु द्वीपे तत्र बहवो वृक्षाः 'हेरुयालवणा' हेस. सालना:-हेस्तालनामकवृक्षाः, तथा भेरुयालवणा' भेरुतालवना:-भेरुतालनामकक्षाः, मेंरुतालवना:-मेरुतालनामा वृक्षाः, 'सेरुयालवणा' सेरुतालगनाः सेरु. सालनामकक्षाः 'सालवणा' शाक्षाः 'सरळवणा' सरलवृक्षाः, 'सत्तवण्णवणा' सप्तपर्णक्षा: 'पूगफलियणा' पूगफलीवृक्षाः, 'खज्जूरिवणा' खरवृक्षा, 'नारिएरिदणा' नारिकेल वृक्षाः एतेषां वृक्षविशेषाणां वनानि-समुदाया. स्तत्र सन्तीति । कथंभूना एने वृक्षविशेषताह-'कुप्त' इत्यादि, 'कुसविकुस जाव चिट्ठति कुशविकुश विशुद्ध वृक्षमूला मूलवन्तः कन्दवन्तः यावरीजवन्तः पत्रः पुष्पैश्च आच्छन्न प्रतिच्छन्न श्रिया अतीबालीव उपशीभमानास्तिष्ठन्ति इति । अतएव इनकी सुन्दरता अत्यन्त मन को लुभानेवानी घनी रहती है 'एगोरुपदीचे णं दीधे तत्थ बह रुक्खा हेस्यालवणा, भेरुचालवणा, मेरुयालवणा, सेरुषालवणा, सालवणा, सरलवणा, सन्तरणक्षणा' उम एकोहक नाम के द्वीप में जगह २, अनेक वृक्ष तो हैं ही साथ में हेरुनाल के वन भी हैं, भेरुताल के बन है मेरुनाल के वन हैं, सेनाल के वन सालवृक्ष के वन हैं सरलवृक्ष के वन हैं सप्तपर्णवृक्ष के वन हैं 'पूयफलिवणा' पूगफल के-सुपारी के बन है 'खज्जूनिवणा' खजूर के वन हैं और 'नारिएरिवणा' नारिकेल के थन हैं ये सब वन 'कुल विकुसरुक्ख, मृला' वृक्षों के नीचे के भाग में कुश और क्षाश ले सर्वथा रहित हैं । इन वनों के जो वृक्ष हैं वे भी सब प्रकारत मृल वाले हैं, प्रशस्तकन्द वाले हैं, याशत् प्रशस्त बीज चालें है। तथा-पत्रों और पुष्पों से ये सब सर्वदा व्याप्त है। अत एव थे अपनी सुखद सुषत्र शोभा से विशेष चिट्टति' तथा तनु सौय मत्यत भनन सोसावन डाय छे. 'एगोरुयदविण दीवे तत्थ बहवे रुक्खा हेरुयालवणो, भेरुयालवणा, मेरुयालवणा, सेरुयालवणा, सालवणा, सरलवणा, सत्तवण्णवणा' मा ३४ नाभना द्वीपमा स्थणे स्थणे. અનેક વૃત છે જ તેની સાથે હેરૂતાલના વન પણ છે. ભેરૂતલના વન પણ છે. મેતાલના વને પણ છે. સેરતાલના વને પણ છે. સાલ વૃક્ષના વન છે. सस वृक्षान। वन छ. सीप नामना वृक्षाना वा छे. 'पूयफलिवणा' ५ ३० ता सारीना सोना पन छ, 'खज्जरिवणा' भरीवृक्षाना वना छे. 'नारिएरिवणा' नाशयेसना पन छ. मा या वने। 'कुस विकुसरुक्ख मूला' વૃક્ષની નીચેના ભાગમાં કશ અને કાશ વિનાના હોય છે. આ વનમાં જે શક્ષા છે, તે બધાજ પ્રશસ્ત મૂળવાળા છે, પ્રશરત સ્કંદવાળા છે. યાવત્ પ્રશeત બીજ વાળા છે. તથા આ બધા વૃક્ષ પત્ર અને પુખેથી હંમેશાં યુક્ત રહે છે. તેથી જ તે પિતાની સુખકર સુષમાથી વિશેષ પ્રમાણમાં સુહાવના जी. ६५ -...- - - . - - - - - - - - - - --
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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