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________________ ५०५ जीवामिगमले ते मत्तगया वि दुमगणा अणेग बहुविविह वीससा परिणयाए मजविहीए उववेशा फलेहिं पुण्णा वीसति कुसविकुस विसुद्धरुखमूला जाव विसति १। एगोरुए दीवे तत्थ तत्थ बहवो भिंगंगया णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से वारग घडगकरगकलसकक्करिपायकंचणिया उदंबद्धणिसु पइगपारी च सकभिंगार करोडिया सरगपत्तीथालमल्लग चवलिय. दगवारकविचित्तवक मणिवट्टक सुत्ति च'रुपीणया कंचणमणि. रयणभत्तिचित्ता भायणविधीए बहुप्पगारा तहेव ते भिंगंगया वि दुमगणा अणेग बहुगविविहवीससा परिणयाए भायण. विहीए उक्वेया फलेहिं पुन्ना विसति कुसविकुस विसुद्धरुक्ख. मूला जाव विसति२। एगोरुय दीवेणं दीवे तत्थर वहवे तुरियंगा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो !, जहा से आलिंगमुयंगपणवण्डहदद्दरग करडिंडिम भंभाहोरंभकण्णियार खरमुहिमुगुंद संखिय परिलविदग परिवाइणि वंसावेणु वीणा सुघोसविवंचि महइकच्छभिरगसगा, तलताल कंसताल सुसंपउत्ता आतोजविहिणिउणगंधव्व समयकुमलेहि फंदिया तिट्टाणसुद्धा तहेव तं तुडियंगया वि दुमगणा अणेग बहुविविहवीसला परिणयाए ततविततघणसुसिराए चउठिवहाए आतोजविहीए उववेया फलेहिं पुण्णा विसदंति, कुसविकुस विसुद्ध रुक्खमूला जाव विसति३। एगोरुय दीवे तत्थर बहवे दीव सीहाणाम दुमगणा पण्णता समणाउसो ! जहा से झंझा विराग समए णवणिहि पइणो दीविया चकवालविंदे पभूयवट्टिपलित्तणेहे धणिउज्जालिय तिमिरमहए कणगणिगरकुसुमिय पालिया
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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