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________________ जीवामिगमहर्म पण्णवेति' एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण प्रज्ञापयन्ति-प्रकर्षेण ज्ञापयन्ति यथा स्वात्मान व्यवस्थितं ज्ञान तथा परेष्वपि आपादयन्तीति । एवं परूवेति' एवं-वक्ष्यमाण प्रकारेण प्ररूपयन्ति । किमाचक्षते किं भापते किं प्रज्ञापयन्ति-कि प्ररूपयन्ति ते परतीथिका इति जिज्ञासायां वक्तव्यार्थ प्रकाशनायाह - 'एवं' इत्यादि एवं खल एगे जीवे एवं खलु एको जीवः 'एगेणं समएणं' एकेन समयेन एकस्मिन् समये इत्यर्थः 'दो किरियाो पकरेंति' द्वे क्रिये मकरोति-क्रियाद्वयं प्रकरोति-संपादयतीति, किं तत् क्रियाद्वयं तत्राह-'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा-'सम्मत्त किरियंच' सम्यक्त्वक्रियां च शुभाध्यवसायात्मिकाम् 'मिच्छत्त किरियं च' मिथ्यात्व क्रियां च-अशुभाध्यवसायात्मिकां च । एकेन समयेन क्रियाद्वयं दर्शयति-'जं समयं' इत्यादि, ‘ज समयं सम्मत्तहिरियं एकरेंइ' 'जं समयं प्राकृतत्वात्सप्तम्यर्थे द्वितीया विभक्तिः तथा च यस्मिन् समये सम्यकक्रियां मकरोति, तं समयं मिच्छत् किरियं पकरे' यस्मिन् समये मिथ्यात्वक्रियां करोति शिष्यों को ऐसाही उन्होंने समझाया है, ऐसी ही उन्होंने प्ररूपणो की है और तर्कणा द्वारा ऐसी ही उन्होंने पुष्टि की है-कि 'एगे जीवे, एगे णं समएणं दो किरियाओ पकरेइ' एक जीव एक समय में दो क्रियाओं को करता है 'तं जहां वे दो क्रियाएं ये है-'संमत्त किरियं च मिच्छत्त किरियं च' एक सम्यक्त्व क्रिया है और दूसरी मिथ्यात्व क्रिया है इन में जो सम्यक्त्व क्रिया है वह सुन्दाधवलायरूप है और जो मिथ्यात्व क्रिया है वह असुन्दराध्यवसायल्प है 'जं समयं संमत्त किरियं पकरे। तं समयं मिच्छत्त किरियं पकरेइ जं सायं मिच्छत्तकिरियं पकरेइ तं समयं संमत्तशिरियं पकरेइ' जीव जिस समय में सम्यक्त्व क्रिया करता है उसी समय में वह मिथ्यात्व क्रिया भी करता है और जिस समय में वह मिथ्यास्व क्रिया करता है उसी समय में वह सम्यक्त्व પિતાના શિષ્યોને એવું જ સમજાવ્યું છે, એવી જ તેઓએ પ્રરૂપણ કરી छ, भने त! | माथे सती पुष्टि री छे , 'एगे जीवे, एगेण समएण दो किरियाओ पकरेइ' मे 24 मे समयमों में व्यामा रे छे. 'त जहा' याया प्रभारी छे. संमत्त किरियच मिच्छत्तकिरियं च' એક સમ્યકત્વ ક્રિયા છે. અને બીજી મિથ્યાત્વ ક્રિયા છે. તેમાં જે મિથ્યાત્વ ठिया छ, तमसुन्६२ २५ध्यवसाय ३५ छे. अथात सारी ती नथी. 'ज समयं संमतकिरिय' पकरेइ, त समय मिच्छत्तकिरियपकरेइ, ज समय मिन्छत्तकिरिय' पकरेइ, तं समय ममत्तकिरिय पकरेइ' २ अभय સમ્યકત્વ ક્રિયા કરે છે, એજ સમયે તે મિથ્યાત્વ ક્રિયાપણ કરે છે, અને
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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