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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ ३.३ सू.२६ पक्षीणां लेश्यादिनिरूपणम् जलचर पञ्चेन्द्रिय जीवा जलचर पञ्चन्द्रियेभ्य उद्धृत्य यावदधः सप्तम्यां गमनस्य श्रुतत्वात्, ऊध्नं यावत् सहस्त्रारकल्पमिति जाति कुळकोटि:-'अद्धतेरसजातिकुलकोडी जोणिपमुइसयसहस्सा पनत्ता' अर्द्ध त्रयोदशजातिकुलकोटियोनि प्रमुखशत. सहस्राणि प्रज्ञतानि, जलचर पञ्चन्द्रिय जीवानामिति 'चउरिदिया णं भंते।' चतुरिन्द्रियाणां जीवानां भदन्त ! 'कइ जाइकुलकोडी जोणीपमुहसयसहस्सा पनत्ता' कति-कि प्रमाणकानि जाति कुलकोटियोनि प्रमुखशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानीति प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'नवजाइ कुलकोडी जोणीपमुहसयसहस्सा भवतीति समक्खाया' नव जाति कुलकोटि योनि प्रमुखशतसहस्राणि-नवलक्षाणि समाख्यातानि । 'तेइंदियाणं पुच्छा' त्रीन्द्रियाणां जीदाना मदन्त ! कतिजातिकुलकोटियोनिप्रमुखशतसहस्राणि, प्रज्ञप्तानीति प्रश्नः, भगवानाह-गोयला' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'अट्ठ जाइकुल जाव समक्खाया' अष्ट जाति कुलकोटियोनि प्रमुखशतसहस्त्राणि समाख्यातानीति । 'बेइंदिया णं भंते ! कइ जाई पुच्छा' द्वीन्द्रियजीवानां भदन्त ! कति जाति कुल कोटियोनि वृत हुआ जीव सातवीं पृथवी तक जाता है क्योंकि तन्दुलमत्स्य जो कि महामत्स्य की भृकुटी के बालों में रहता है मरकर सातवीं पृथिवी में जाता है ऐसा शास्त्रों में सुना जाता है । 'अद्धतेरसजाति कुल कोडी योणि पमुहलयसहस्सो पन्नता' जलचर जीवों की कुलकोडी साढे चारह १२॥ लाख हैं 'चरिया णं भंते !' हे भदन्त ! चौइन्द्रिय जीवों की कितनी लाख कुल कोडियां हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा। नव जाइ कुल कोडी जोणी' हे सदन्त ! तेइन्द्रिय जीवों की कितनी लाख कुलकोडी हैं ? 'गोधमा ! अजाइ कुल जाव मक्खाया' हे गौतम! तेइ. पा द्वारा ४९ छे. 'णवरं उबट्टित्ता जाव अहे सत्तमि पुढवि" यरोभाया નીકળેલા જ સાતમી તમસ્તમાં પૃથવી સુધી જાય છે, કેમકે તંદુલમર્યો કે જે મહા મતસ્યની ભમરોના વાળમાં રહે છે. તે મરીને સાતમી પૃથ્વીમાં જાય છે. એ प्रमाणे ४थन ४२वामां मावत छे. 'अद्धतेरस जातिकुल कोडी जोणिपमहसथ. सहस्सा पण्णत्ता' ४सयनी पुस टी १२॥ सा मा२ सामनी छे. चलरि दियाण भते ! हे भगवन् । यार ।द्रियावा वानी तरी टा मन छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रसु . छे 'गोयमा ! नव जाइ कुल कोडी जोणो. गीतमयार दिये। वासवानी नाम हटी हाय छे. 'तेइंदियाणं पुच्छा' हे सगवन् द्रियावाणा वानी हटी टा सामना डिस छ ? उत्तरमा प्रभुश्री छ 'गोयमा ! अद्रजाइ कुल जाव “मक्खया' गौतम ! दियावाणा वानी मा म उस अटीछे,
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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