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________________ प्रमेयद्योर्तिका टीका प्र.३ उ.३ सू.२६ पक्षीणां लेश्यादिनिरूपणम् ४०३ प्रश्नः, भगवानाह-'मोयमा' हे गौतम! 'छल्लेस्साओ पनत्ताओ' पहलेश्याः प्रज्ञप्ता:-कथिताः 'तं जहा' तद्यथा-कण्हलेसा जाब मुक्कलेस्सा' कृष्णलेश्यायावच्छुक्कलेश्याः, अत्र यावत्पदेन नीलकापोततेजसपालेश्यानां संग्रहो भवति, पक्षिणांद्रव्यतो भावतो वा सर्वा अपि लेश्या भवन्ति, सथाविधपरिणामसंभवादिति । 'ते णं भंते ! जीवा' ते खल्लु भवन्द ! पक्षिणो जीवाः 'किं सम्मदिट्टि मिच्छा. दिट्टि सम्मामिच्छादिहि' किं सम्यग्दृष्टयो भवन्ति, अथवा मिथ्यादृष्टयो भवन्ति यद्वा सम्यग्मिथ्यादृष्टया (मिश्रष्टयः) भवन्तीति प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सम्मदिही वि' पक्षिणः सम्यग्दृष्टयोऽपि भवन्ति 'मिच्छादिट्ठीवि' मिथ्शादृष्टयोऽपि भवन्ति, 'सम्मामिच्छादिट्ठीवि' सम्यग्मिथ्या. दृष्टयः 'मिश्रदृष्टयोऽपि भवन्तीति' 'ते णं भंते जीवा' ते पक्षिणः खलु भदन्त ! कइलेस्साओ पन्नताओ' है भदन्त्य ! इन पक्षियों के कितनी लेश्याएं कही गई ? उत्तर में प्रभुश्री कहते है भाक्ष की अपेक्षा 'गोयमा ! छ लेस्साओ पन्नताओ' हे गौतम! इन पक्षियों के छह लेश्याएं कही गई हैं। 'तं जहा' जैसे-कण्ह लेखा जाय सुकलेस्सा' कृष्ण लेश्या, यावत् नीललेश्या, कापोतलेघा, तेजल लेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या इस प्रकार रहे पक्षियों के द्रव्य की अपेक्षा और भाव की अपेक्षा सभी लेश्याएं होती हैं। क्योंकि इनके इस प्रकार के परिणामों को संभवता हैं। 'ते णं भंते ! जीवा किं सम्मदिट्टी, मिच्छादिट्ठी' हे भदन्त ! वे जीव क्या सम्यग्दृष्टि होते है ? या मिथ्यादृष्टि होते हैं ? या 'सम्मानिच्छादिट्टी मिश्र दृष्टि होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोय. मा! सम्माठिी वि' वे सभ्यष्टि भी होते हैं 'मिच्छादिट्टी वि' मिथ्या'एएसि णं भसे ! जीवाणं कइ लेस्साओ पण्णत्ताओ' है मापन ! यक्षिन्माने કેટલી વેશ્યાઓ કહેવામાં આવી છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમસ્વામીને ४ छ । 'गोयमा ! छ लेखाओ पण्णताओं' हे गीतम! २0 पक्षिसाने ७ वेश्यामा वाम मावी छ. 'तं जहा' म 'कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा' કૃષ્ણલેશ્યા નીલલેશ્યા, કાતિલેશ્યા, તૈજસલેશ્યા પલેશ્યા, અને શુકલેશ્યા. આ પ્રમાણે પક્ષિઓને દ્રવ્યની અપેક્ષાથી અને ભાવની અપેક્ષાથી પણ લેશ્યા हाय छे. 'ते णं भंते ! जीवा कि' सम्मदिट्टि' मिच्छादिट्ठी' हे मापन ते । શું સમ્યમ્ દષ્ટિ વાળા હેય છે ? કે મિથ્યા દષ્ટિવાળા હોય છે ? અથવા 'सम्मामिच्छादिदी' मिलिटवाया जाय छ ? म प्रश्न उत्तरमा प्रमुश्री ४ ३ 'गोयया ! सम्मद्धिट्ठी वि' ती सम्यष्टामा ५० डाय छे. 'मिछा दि.
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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