SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 419
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेयधोतिका टीका प्र.३ २.३ सू.२५ तियेग्योनिस्वरूपनिरूपणम् ३२५ दियतिरिक्खजोगिया दुविहा पन्नत्ता' उर परिसर्पस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका द्विविधाः-द्विपकारका प्रज्ञप्ता:-कथिता इति, 'तं जहा' तद्यथा-'जहेव जलचराणं तहेव चउक्को भेदो' यथैव जलचराणां संमृच्छिमगर्भजपर्याप्तापर्याप्ता इति चतु. को भेदः कथितः, तथैव-तेनैव रूपेण उरःपरिसर्पस्थलचराणामपि संमूछिमगर्भ: जपर्याप्तापर्याप्तेति चतुष्को भेदो ज्ञातव्यः, उरम्परिसः द्विविधा भवन्ति संम. च्छिमा गर्भ नाश्च तत्र संमूच्छिमा अपि पर्याप्तापर्याप्तभेदेन द्विविधा भवन्ति, तथा-गर्भजा अपि पर्याप्ताप्तिभेदेन द्विविधा भवन्ति तदेवं चतुष्को भेदो भवतीति भावः। 'से तं भुनपरिसपथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिया' ते एते भुजपरिसर्पस्थल वरपञ्चेन्द्रियतियंग्यौनिकाः भेदाभेदाभ्यां निरूपिता इति । 'से तं थलयरपंचिंदियतिरिक्खनोणिया' ते एते स्थलचरपञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकाः भेदमभेदाभ्यां निरूपिता इति ॥ उत्तर में कहते हैं-'उरपरिसप्पथलयर पंचिंदिय' हे गौतम ! उरम्परिसर्प स्थलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्थ ग्योनिक जीव दो प्रकार के हैं-'तंजहा' जैसे'जहेव जलपराण' जलचर जीवों के संमूच्छिम और गर्भज के भेद से दो प्रकार बतलाये गये हैं और इन संमूच्छिम गर्भज के पर्याप्त और अपर्याप्त ऐसे दो दो भेद और कहे गये हैं-इसी तरह से उरः परिसो के भी मूल में संमूच्छिम और गर्भज ऐसे दो भेद होते हैं और इनके पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद ले दो दो भेद और हो जाते है-इस प्रकार उर परिसर्पस्थलचरतियंग्योनिकों के चार भेद हो जाते हैं। इसी प्रकार से भुजपरिसों के भी संमूच्छिम और गर्भज के भेद से दो भेद हैं. और इन भेदों के भी प्रत्येक के पर्याप्त और अपर्याप्त ऐसे दो भेद और हैं । ऐसे चार भेद हो जाते हैं। उत्तरमा पुसुश्री ३ छ है 'उरपरिसप्प थलयर पचि दिय' है गीतम! १२:५. रिसपथसयर पथन्द्रिय तिय योनि में प्रा२ना द्या छे. तजहा' त मा प्रभारी छ. म 'जव जलयराणं' सय२७। सभूमि गमन से રીતે બે પ્રકારના કહ્યા છે. અને આ સંમર્ણિમ અને ગર્ભજના પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત એ પ્રમાણેના બન્ને ભેદે બીજા કહ્યા છે. એ જ પ્રમાણે ઉરસ્પરિસર્ષના પણ સંમૂર્ણિમ અને ગર્ભજ એ પ્રમાણેના મૂલ બે જ ભેદે હોય છે. અને તેઓના પર્યાપ્ત અને પર્યાપ્તના બે ભેદથી બીજા બબ્બે ભેદ થઈ જાય છે. એ રીતે ઉર પરિસર્ષ સ્થલચર તિયંગેનિકોના ચાર ભેદ થઈ જાય છે. એ જ પ્રમાણે ભુજ પરિસર્પોને પણ સંમૂચિઠ્ઠમ અને ગર્ભજના ભેદથી બે ભેદ થાય છે. અને એ દરેક ભેદમાં પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત એ પ્રમાણેના બીજા બે ભેદે થાય છે. આ રીતે કુલ ચાર ભેદ થઈ જાય છે,
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy