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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.२५ तिर्यग्योनिस्वरूपनिरूपणम् द्विविधाः-द्विप्रकारकाः प्रज्ञाप्पा:-कथिता इति । 'तं जहा' तयथा-'पज्जत्तगगमवतिय जलयरपंचिदियतिरिक्खजोगिया पर्याप्त कगर्भव्युत्क्रान्तिकजलचरपश्चे न्द्रियतियग्यो निकाः 'एज्जत्तगगम्भववतिय जलयरएपंचिदितिरिक्खजोणिया' अपर्याप्तऋगभव्युत्क्रान्तिकजल वरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योकाः, तथा च पर्याप्तका प्तकभेदेन गर्भजजलचरा द्विविधा महन्तीति। 'सेत गमावलिय जलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिसा ते एते मन्यन्क्रान्तिबजलचरपञ्चन्द्रियनियंग्यानिका निरूपिता से तं जलापंचिरितिरिवखन जिया' से एसे जलचरपञ्चन्द्रिय तिर्यम्पोनिका जीजा सेवायेदाभ्यां निरूपिता इति । जलचरान्निरूपय स्थलचरान् निरूपयितु पश्नयनाह- से किं तं थलयर' इत्यादि, ‘से किं तं थलयर चिदियनिरिक्खजोणिया' अथ के ते स्थल चरयचे न्द्रियतिर्यगोनिकाः १ स्थलचर पञ्चेन्द्रियतिरश्चां कियन्तो भेदा इति प्रश्नः, उत्तरयति-थलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिया' दिहा एमत्ता' स्थलचरपञ्चेन्द्रिर'पज्जत्तग भवतिय जल पर तिरिक्ख जोणिया पर्याप्तक गर्भज जलचर पंचेन्द्रिय तिर्थयोनिक्ष और 'अपज्जत्तम गन्भवतिय तिरिक्खजोणिया' अपर्याप्तक गर्भज जलचर पञ्चन्द्रिमा तिर्थयोनिक 'सेत्तं गब्यक्षकोलिश जलयर पंचि०' इल झार से गर्भज जलचर पचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीच दो प्रकार के कई है। ___ अब स्मशार हथलचर पञ्चन्द्रिय तिर्थ योनि जीयों का वर्णन करते है-'से कि तं थलचर पपिदिय तिरिखजोणिया' हे अदन्त ! स्थलचर पञ्चेन्द्रिय लियोनिक जीव शितने प्रकार के है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'थलयर पंचिदिश विवि मोणिया दुविहा पणत्ता' हे गौतम! स्थलचर पञ्चन्द्रिय लियोनिक जीव दो प्रकार के है-'तं जहा' जैसेमे प्रा२ना डाय छे. 'त' जहा' ते मे ५४.२ 241 प्रभाग छ. 'पज्जत्तगगम्भवतिय जलयर पचिदियतिरिकखजोगिया पति Har सय२ ५'यन्द्रियतिय यानि भने 'अपज्जत्तग गम्भवतिय तिरिक्ख जोणिया' मर्यात Tor eA२५ ये न्द्रिय तिय योनि से तंगभवतिय जलयापचिं दियतिरिक्खजोणिया' मा પ્રમાણે આ ગર્ભજ જલચર પંચેન્દ્રિય તિર્યંચેનિક જીવો બે પ્રકારના કહ્યા છે. હવે સૂત્રકાર સ્થલચર પંચેન્દ્રિય તિર્યનિક જીવોનું વર્ણન કરે છે. तमा गीतमस्वामी सन प से कि तं थलयर पचि दिय तिरिव स्व. जोणिया' हे भगवन स्वय२ ५'यन्द्रिय तिय यानि लाटता प्रारना ४ा छ१ मा प्रशना बत्तरमा सुश्री गीतमस्वामीन ४ ४ 'थलयर पचि दिय तिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता' हे गौतम । स्थलय२ ५'थेन्द्रिय
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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