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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.२५ तिर्यग्योनिस्वरूपनिरूपण ३८३ उजत्तसुहमपुढीलाइय एगिदियतिरिक्ख जोणिया' अपर्याप्त सक्षमपृधवीकायिकैकेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः, तथा च पर्याप्तापर्याप्तभेदेन सूक्ष्म पृथिवीकायिकैकेन्द्रियतिर्यग्योनिका द्विविधा अवन्तीति । 'से तं सुहुम पुढवीराइय एगिदितिरिक्खजोणिया से एते सक्षमपृथिवीकारि कैकेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः सभेदं निरूपिताइति । सक्षमपृथिवीकाचिकैकान् निरूप्य वादरपृथिवीकायिकान् निरूपचितुं प्रनयनाह'से क्षित' इत्यादि से किं तं बादरपुढवीकाइय एगिदिय सिरिक बनोणिया' अथ के ते बादरपृथिवीमायिकैकेन्द्रिगतियंग्योलिकाः, बादरपृथिवीकारिकैकेन्द्रियतिर्यग्यो निकानां कियन्तो भेदा इति मना, उत्तरयति-'वायर पुढवीकाय एनिदिय तिरिक्वजोगिया दुदिहा पन्नत्ता' वादरपृथिवीकारिकै केन्द्रियतिग्यो निकाः द्विविधाः -द्विमन्नारकाः प्रज्ञप्ता-कथिता इति । 'तं जहा' तद्यथा-उजत्त बायर पुढची. काइय एगिदिय तिरिक्खजोणिया' पर्याप्तवादरपृथिविकारिक केन्द्रियतिर्यग्योनिकाः, तथा 'अपज्जत्त बायर पुढवीकाइय एगिदिय तिक्खिजोणिया' अपर्याप्त प्रकार से सूक्ष्य पृथिवी झायिक एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों के सम्बन्ध में सूत्रकार ने कथन किया है। अय वादर पृथिवी शायिकों का कथन करते है-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-'ले कितं शायर पुढवीक्षाध्य एगिदिय तिरिक्खजोगिया' हे भदन्न ! चादर पृथिवीकाधिक एनेन्द्रिय जीव शिनने प्रकार के? उत्तर में प्रभु कहते हैं-शायर पुढवी साहय एगिदियनिरिक्खजोगिया दुधिहा पन्नत्ता 'हे गौतम ! यादर पृथिवी क्षायिक एकेन्द्रिय तिर्थ योनिक जीव भी दो प्रकार के कहे गये हैं-'तं जहां-जैसे-'पजत्तवायर पुढवी काइय एगिदिय तिरिक्खजोणिया' पानि चादर पृथिवीकायिक एके. सूक्ष्म पृथ्वीयि मे द्रियाणा तिय योनि भने 'अपज्जत सुहमः। अपर्याप्त सूक्ष्म १३यि: छद्रिय तियध्ये नि: 'से त सुहम०' આ પ્રમાણે સહમ પૃથ્વીકાયિક એક ઈદ્રિયવાળા તિર્યંગ્યનિક જીના સંબંધમાં સૂત્રકારે કથન કર્યું છે. હવે પાદર પૃથ્વીકાયિકોનું કથન કરવામાં આવે છે. આમાં શ્રીગૌતમ स्वामीथे असुश्रीने से पूण्य है 'से वित्त वायरपुढवीकाइय एगिदिय तिरिक्खजीणिया' माह२ .१४ यि थे छद्रियवाणा असरना छ ? भा प्रश्न उत्तरमा प्रमुश्री छे है 'वायर पुढवीकाइय एगि दिय तिरिक्खजोणिय। दाविहा पन्नत्ता' है गौतम ! मा२ पृथ्वीय मेद्रियाणा तिय योनि वेया मे जाना हेवामा मा०या है. 'तजहा' ते मे । मा प्रमाणे छे. 'पज्जत वायर पुढवीकाइय एगि दियतिरिक्खजोणिया' पर्यात
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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