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________________ नीवाभिगमसूत्रे 'इमाणं भंते ! रयणप्पभा पुढवी' इयं खलु भदन्त । रत्नप्रभा पृथिवी 'दोच्चं पुढवि पणिहाय' द्वितीयां शर्कराप्रमापृथिवीं प्रणिधाय - प्रतीत्य 'सव्वमहंतिया बाहल्लेणं' सर्व महती बाहल्येन 'सम्यक्खुडिया सव्यंतेसु' सर्वक्षुद्रिका सर्वान्तेषु द्वितीय पृथिव्यपेक्षया प्रथमा रत्नप्रभा पृथिवीवाहल्येन सर्वमहती सर्वान्तेषु सर्वक्षुद्राकिमिति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'हंता गोयमा' इन् हे गौतम ! 'इमाणं रयणप्पभा पुढवी' इयं खल रत्नप्रभा पृथिवी 'दोच्चं पुढवि पनिहाय जाव सन्बखुडिया सव्यंतेसु' द्वितीयां पृथिवीं प्रणिधाय अपेक्ष्य सर्वमहती बाल्न, सर्वतः क्षुद्रिका सर्वान्तेषु इति । ३४८ 1 यतः -- रत्नप्रभा पृथिव्या बाहल्पम् अशीतिसहस्राधिक लक्षयोजनप्रमितम् शर्कराप्रभायास्तु द्वात्रिंशत्सहस्राधिकलक्षयोजनप्रमितमेव ततो द्वितीय पृथिव्यपेक्षया प्रथमा पृथिवी सर्व महतीत्युक्तम् । आयामविष्कम्भापेक्षया प्रथमा सर्वक्षुल्लिका यतः शर्कराममा द्विरज्जुममाणा इयं रत्नप्रभात एकरज्जु प्रमितैव चाहिये क्योकि नारकों के निवास स्थान अत्युग्र अन्धकार से व्याप्त रहते हैं अतः वहां तेज स्पर्श की असंभवता है । 'इमा णं भंते रियणप्पा पुढवी दोच्चं पुढर्वि पणिहाय' हे भदन्त ! यह रत्नप्रभा पृथिवी द्वितीय शर्कराप्रभा पृथिवी की अपेक्षा क्या मोटाई में बड़ी है और अन्तर्भागों में अर्थात् लम्बाई चौड़ाई में क्या छोटी है ? इस के उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'हंता गोधमा । हां गौतम ! ऐसा ही है क्योंकि 'इमाणं रचणपला पुढवी दोच्चं पुढविं पणिहाय जांच सव्व खुडिया सव्र्वतेषु 'इस रत्नप्रभा पृथिवी की मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन की है और शर्कराभा पृथिवी की मोटाई एक लाख वीस हजार योजन की है तथा रत्नप्रभा पृथिवी की लंबाई चौडाई एक राजू की है और शर्कराप्रभा पृथिवी की लम्बाई चौड़ाई दो राजू की है 'दोच्चाणं भंते पुढवी' हे भदन्त । द्वितीय शर्कराप्रभा पृथिवी 'इमाण' भये ! रयणप्पभा पुढवी दोच्च पुढवि पणिहाय' हे भगवन आ રત્નપ્રભા પૃથ્વી ખીજી શર્કરાપ્રભા પૃથ્વીની અપેક્ષાએ શું વધારે માટી છે? અને બધા અંતર્ભાગામાં અર્થાત્ લંબાઇ પહેાળાઈમાં શુ' નાની છે ? ગૌતમસ્વામી નાં આ प्रश्नना उत्तरमां अलुश्री छे ! 'इमाणं' रयणप्पभा पुढवी दोच्य पुढवि पणिहाच जाव सव्व खुट्टिया सव्व ठेसु' मा रत्नअला पृथ्वीनी मोटाई (વિશાળતા) એક લાખ એંસી હજાર ચેાજનની છે. તથા રત્નપ્રભા પૃથ્વીની લખાઈ પહેાળાઇ એક રાજુની છે, અને શર્કરાપ્રભા પૃથ્વીની લંબાઈ પહેાળાઇ मे शनुनी छे. 'दोच्चाणं भंते ! पुढवी' हे भगवन् खील शहराला पृथ्वी
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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