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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.२ २.१८ नारक जीवानां संहनननिरूपणम् २४७ सम्पति-नारकाणां संस्थानमतिपादनार्थमाह-'इसी से एं' इत्यादि, 'इमीसे णं भंते' एतस्यां खलु भदन्त ! 'रयणप्पभाए पुढीए' रत्नमायां पृथिव्याम 'नेरइयाणं सरीरा कि संठिया पन्नत्ता' नैरयिकाणां शरीराणि झिं संस्थितानिकीदृशसंस्थानयुक्तानि प्रज्ञशानि-कथितानीति प्रश्न:, भगवानाह'गोरमा' इत्यादि 'मोयमा' हे गोला ! 'दुविहा पन्नता' नारकाणां शरीराणि द्विविधानि द्विप्रकारकाणि प्रज्ञतानि-कथितानि 'तं जहा' तयथा 'भत्रधारपिज्जाय' अवधारणीयानि च 'उत्तर देउपिया य' उत्तरक्रियाण च 'तत्थ ण जे ते भववारणिज्जा' त्रतयोर्मध्ये यानि तानि शरीराणि भवधारणीयानि 'ते हुडसंठिया पन्नता तानि हुण्ड संस्थितानि-हुण्ड संस्थान युक्तानि प्रज्ञप्तानि, भधारणीयानि नारक.मनस्वाभा. है चाहे यह अवधारणीय शारीर हो, चाहे उत्तर बैंक्रिय रूप शरीर हो। अघ सूत्रकार नारक जीवों का शरीर कि संस्थान वाला होता है-इस बात का कथन करते है इसमें गौरभ ले प्रभु खे ऐसा पूछा है. 'इमीसे णं भंते ! रयणपाए पुढीए' हे अदन्त ! सस्त रत्नप्रभा पृथिली के नरकावासों के नैयिकों के शरीर किल्ल संस्थान वाले होते है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! दुविहा पन्नत्ता' हे गौतम । नारकों के शरीर दो प्रकार के कहे गये हैं-'तं जहा' जैसे अवधारणिज्जा य उत्तर वेब्धियाय' एक भवधारणीय शरीर और दूसरा उत्तर वैक्रिय शरीर 'तत्ध गंजे ते भवधारणिज्जा' इनमें जो नारकजीवों के अवधार. णीय शरीर हैं वे 'हुंड संठिया पन्नत्ता' हुण्डक संस्थान वाले होते हैंजो शरीर मारक भव की प्राप्ति होते ही प्राप्त होता है वह शरीर भवधारणीय शरीर है और यह वैक्रिय शरीर ही है नारकजीयों के हुण्डक વાળા હોતા નથી, ચાહે તે ભવધારણીય હોય કે ચાહે ઉત્તર કિય રૂ૫ શરીર હોય ? હવે સૂત્રકાર નારકોના શરીરો કયા સંસ્થાન વાળા હોય છે. એ વાતનું કથન કરે છે. આ સંબંધમાં ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુને એવું પૂછયું કે 'इमीसे गं भंदे ! रयणप्पभाए पुढवीए' सगवन् मा २त्नमा पृथ्वीना न२३१. વાસેના નૈરયિકેના શરીરે કયા સંસ્થાન વાળા હોય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभु गौतमत्वामीन छ 'गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता' हे गौतम ! ना२४ वन शशश में प्रा२ना अपामा मावस छे. 'तं जहा' ते मे २ मा प्रभाव छ, 'भवधारणिज्जाय उत्तर वेउब्धियाय' से अवधारणीय शरी२ सन भी उत्तर वैश्यि शरीर 'तत्थ णजे ते भवधारणिज्जा' ते १२ न.२४ पधारणीय शशश छे, तमे। 'इडसठिया पन्नत्ता'९४४ स२५ नपा હોય છે જે શરીર નારકભવની પ્રાપ્તિ થતાં જ પ્રાપ્ત થાય છે, તે શરીરને
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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