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________________ जीवाभिगम सूत्रे १७८ एव तद्वत् संस्थिता इति पटहसंस्थिताः १७ 'भेरीसंठिया' भेरी ढका वद्वत् संस्थिता इति भेरी संस्थिताः १८ 'झलरी संठिया' झल्लरी संस्थिताः झल्लरी - चर्मावनद्धा विस्तीर्णवलकारा वायविशेषरू त संस्थिता इति झलरी संस्थिताः १९ 'कुत्थुवग संठिया' कुस्तुम्नकः -- वाद्यविशेष स्वद्वत् संस्थिता इति कुस्तुम्बक - संस्थिताः २० 'नाली संठिया' नाडी घटिका तद्वत् संस्थिता इति नाडीसंस्थिताः २१ नरका रत्नमायामिति । अत्र द्वे संग्रहमा - 'जयको १ पिटूपयणग-२ कंद ३ कोटी ४ कडाह ५ संठाणा । थाली ६ पिटरग ७ किष्णग ८उडर ९ मुरवे १० मुयंगे य ११ ॥१॥ नदि सुयंगे १२ आलिंग १३ घोने १४ दद्दरे १५ च पणवे १६ य | पडहगे १७ भेरी १८ झल्लार १९ कुत्थु वग२० नाडि ठाणा ॥२॥ अय: कोष्ठक - पिष्टपचनक - कन्दु - छोहि-चटाह - संस्थानाः । स्थाली-पिठरक - फीर्णक- उटजो रजो मृदङ्ग ||१|| नन्दिमृङ्गः आलिङ्गः सुघोषः दर्दरव पणरथ । पटहक भेरी झल्लरी कुत्थुवा नाडीयानाः इति ॥ 'एवं जाब तसाए एवं' यावत् नाममा पर्यन्तम् । एवं यथा रत्नप्रभाया नरकाः कथितास्तथैव शर्कराभा वालुकाममा पद्म धूपभा दमः प्रभानामपि नरका के जैसे आकार वाले हैं। कितने 'भेरी संटिया' भेरी नामक वाद्य विशेषके जैसे आकार वाले है जितनेक 'झोली इंठिया' चमडे से मडी हुई विस्तीर्ण वलयासर झल्लरी नामक वाय विशेष के जैसे आकार वाले हैं। 'कुम्भुं संठिया' किसनेक कुस्तुंवक वाद्य विशेष के जैसे आकार गये हैं। मिलनेक 'नाडी इंडिया' नाडी -जल घटिका से जैसे आकार वाले है २१। यहां दो संग्रह गाथाएं हैं'rents' इत्यादि, इनका अर्थ उपर प्रमाण समझदेवें । 'एवं जाय तमाए' जिस प्रकार से रत्नप्रभा के नरक कहे गये हैं उसी तरह से तमा पृथिवी तक कह देव चाहिये जैसे- शर्कराभा, वालुकाममा, पङ्कपमा, धूमप्रभा और तमःप्रभा के नरकों का भी कथन छे. डेटलाई 'झलरी सठिया याभडाथी भठेची विस्तृत सेयानी भार જેવા ઝાલર નામના વાદ્યવિશેષના જેવા કાર वाजा हे 'कुत्थु वगसठिया' उeals, स्तुवाद्यविशेषता वा 'आरवाजा हे 'नाडी सठिया ' નાડી જલઘટિકાના જેવા આકારવાળા છે ૨૧ા આ સબધમાં એ સ’ગ્રહે गाथाओ छे. 'अयकोट्टे' इत्यादि खाना अर्थ पर उस प्रहारथी सम सेवा. ' एवं नाव तमाए' ? प्रमाणे रत्नअला पृथ्वीना नरहे। उडेला छे. એજ પ્રમાણે તમા નામની પૃથ્વી સુધી કથન કરવું જોઇએ. અર્થાત્-શર્કરા પ્રભા વાલુકાપ્રભા પુકપ્રભા, ધૂમપ્રભા, અને તમઃપ્રભના નરકાનું પણ થત
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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