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________________ Vvvvvv. जीवाभिगमसूत्रे mmmwuwuwun -दयेऽपि परस्परं तुल्या. संख्येयगुणाधिका भवन्तीति "पुचविदेहअवरविदेहकम्मभूमिगमणु स्सित्थियाओ दो वि तुल्ला संखेज्जगुणाओ" पूर्वापरविदेहमनुष्यपुरुषापेक्षया पुर्वविदेहापरविदेह कर्मभूमिक मनुष्यस्त्रियो द्वय्योऽपि परस्परं तुल्याः सत्यः सख्येयगुणाधिका भवन्ति सप्तविंशतिगुणत्वात् ! 'अंतरदीवगमणुस्सणपुंसगा असंखज्जगुणा" पूर्वविदेहापरविदेहमनुष्यस्त्र्यपेक्षया अन्तरद्वीपकमनुष्यनपुंसका असंख्येयगुणाधिका भवन्ति श्रेण्यसंख्येयभागताकाशप्रदेशराशिप्रमाणत्वादिति । "देवकुरु उत्तरकुरु अकम्मभूमिगमणुस्सणपुंसगा दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा" अन्तरद्वीपक मनुष्यनपुसकापेक्षया देवकुरूत्तरकुर्वकर्मभूमिकमनुष्यनपुंसकाः द्वयेऽपि परस्परं तुल्याः सन्त' संख्येयगुणाधिका भवन्तीति 'तहेव जाव पुनविदेह अवरविदेहकम्मभूमिगमणुस्सणपुंसगा दो वि तुल्ला सखेज्जगुणा' तथैव यावत् पूर्वविदेहापरविदेहकर्मभूमिकमनुष्यनपुंसका द्वयेऽपि के मनुष्य पुरुष परस्पर मे समान होते हुए भरत क्षेत्र एवं ऐरवत क्षेत्र की मनुष्यस्त्रियो से सख्यात गुणे अधिक है । तथा-"पुच्चविदेह-अवरविदेह कम्मभूमिगमणुस्सिस्थियाओ दो वि तुल्ला संखेज्जगुणाओ" पूर्वविदेह और पश्चिम विदेह के मनुष्य पुरुषो की अपेक्षा वहां की मनुष्य स्त्रिया परस्पर में समान होती हुई सख्यात गुणी अधिक हैं । क्योकि यहां स्त्रियां सत्ताईस गुणी-अधिक है। “अंतरदीवगमणुस्सणपुंसगा असंखेज्जगुणा" पूर्वविदेह और पश्चिम विदेह की मनुष्यस्त्रियो की अपेक्षा अन्तरद्वीप के मनुष्य नपुंसक असख्यात गुणे अधिक हैं क्योकि ये श्रेणियो के असख्यातभागवर्ती आकाश राशि प्रमाणवाले होते है । "देव कुरूत्तरकुरु अकम्मभूमिग मणुस्सणपुंसगा दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा" देवकुरु और उत्तरकुरु रूप अकर्मभूमि के मनुष्य नपुंसक परस्पर में समान होते हुए अन्तरद्वीपज मनुष्यनपुंसको की अपेक्षा सख्यात गुणें अधिक है । "तहेव जाव पुव्वविदेहअवरविदेह कम्मभूमिगमणुस्सणपुंसगा दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा" इसी प्रकार यावत् देवकुरु और પરસ્પરમાં સમાન છે, અને ભરતક્ષેત્ર અને અરવતક્ષેત્રના મનુષ્ય સિયે કરતાં સંખ્યાતગણ पधारे छे तथा-"पुव्वविदेह अवरविदेहकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दो वि तुल्ला संखेज्जगुणाओ' पूर्व विटेड मने पश्चिम विना मनुष्य पु३ष। ४२ता त्यांनी मनुष्य स्त्रिये ५२સ્પરમાં સરખી છે, અને સંખ્યાતગણી વધારે છે કેમકે—અહિયાં સ્ત્રિ સત્યાવી सगणी पधारे छ "अंतरदीवगमणुस्सणपुंसगा असंखेज्जगुणा" पूर्व विहेड २५ने पश्चिमविह ની મનુષ્ય સ્ત્રિો કરતાં અતરદ્વીપના મનુષ્ય નપુંસકે અસંખ્યાતગણું વધારે છે, કેમકે— तभागियाना समन्यातमाता मा प्रदेश राशि प्रभा वाणा हाय छ 'देवकुरूत्तरकुरु अकम्मभूमिग मणुस्सणपुंसगा" दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा" हेवा३ भने उत्त२३ રૂપ અકર્મભૂમિના મનુષ્ય નપુસકે પરસ્પરમાં સરખા હેતાથકા અતરદ્વીપના મનુષ્ય નપુંસકે ४२di सध्यातमा धारे छे. 'तहेव जाव पुव्वविदेह अवरविदेह कम्मभूमिगमणुस्सणपुंसगा दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा" मा प्रमाणे यावत वि३ भने उत्त२७३न। मनुष्य नपुस ४२तां - - -
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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