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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र २ सू०१९ सामान्यतः पञ्चाल्पवहुत्वनिरूपणम् ५९५ वा' विशेपाधिका वा इत्यल्पबहुत्वविषयकः प्रश्नः, भगवानाह–'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सव्वत्थोवा' सर्वस्तोकाः 'जेरइयणपुंसगा' नैरयिकनपुंसकाः सर्वेभ्यो देवस्त्रीपुरुषेभ्यो नैरयिकनपुंसका अल्पा भवन्ति । अंगुलमात्रक्षेत्रप्रदेशराशौ स्वप्रथमवर्गमूलेन गुणिते यावान् प्रदेशराशि भवति तावत्प्रमाणासु घनीकृतस्य लोकस्य एकप्रादेशिकीषु श्रेणीषु यावन्तो नभःप्रदेशास्तावत्प्रमाणत्वादिति । 'देवपुरिसा असंखेज्जगुणा' नारकनपुंसकापेक्षया देवपुरुषा असख्यातगुणा अधिका मवन्ति, असख्येययोजनकोटिकोटी प्रमाणायां सूची यावन्तो नभः प्रदेशास्तावत्प्रमाणासु घनीकृतस्य लोकस्यैकप्रादेशिकीषु श्रेणीषु यावन्त आकाशप्रदेशास्तावत्प्रमाणत्वादिति । 'देवित्थीओ संखेज्जगुणाओ' देवपुरुषापेक्षया देवस्त्रियः सख्येयगुणाधिका, भवन्ति द्वात्रिंशद्गुणाधिकत्वादिति चतुर्थमल्पबहुत्वमिति ॥ ने प्रभु से ऐसा पूछा है-हे भदन्त ! इन देवस्त्रियों के, देव पुरुषो के और नैरयिक नपुंसको के बीच में कौन किनसे अल्प है ? कौन किनसे बहुत है ? कौन किनके वरावरहैं ? और कौन किन से विशेषाधिक है इसके उत्तर में प्रभु ने ऐसा कहा है गोयमा ! हे 'गौतम' । 'सव्वत्थोवा' सबसे कम ‘णेरइयणपुंसगा' नैरयिकनपुंसक है। क्योकि इनका प्रमाण अगुलमात्र क्षेत्र में जितनी प्रदेश राशि है उसको उसीके प्रथमवर्गमूल से गुणित करने पर जितने प्रदेश राशि आती है उतनी घनीकृत लोककी एक प्रदेश वाली श्रेणियो में जितने आकाश प्रदेश होते हैं उतना है । "देवपुरिसा असंखेज्जगुणा" नारक नपुंसको की अपेक्षा देवपुरुप असख्यात गुणे अधिक हैं। क्योकि इनका प्रमाण असख्यात योजन कोटाकोटि प्रमाण सूचि में जितने आकाश प्रदेश होते है इतनी घनीकृतलोककी एक प्रदेश वाली श्रेणियो में जितने आकाश प्रदेश हैं उतना कहा गया है. “देवित्थीओ संखेज्जगुणाओ" देवस्त्रियाँ देवपुरुषो की अपेक्षा संख्यात गुणी अधिक हैं। क्योकि देवियो का प्रमाण देवों से बत्तीस गुणा अधिक कहा गया है । इस સ્વામીએ આ સંબંધમાં એ પ્રશ્ન કર્યો છે કે હે ભગવનું આ દેવીયોમાં, દેવપુરૂષોમાં અને નૈરયિક નપુસકેમાં કેણું કોનાથી અલ્પ છે ? કેણુ કેનાથી વધારે છે? કે કેની બરોબર છે ? અને કેણ કેનાથી વિશેષાધિક છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુએ ગૌતમ स्वाभान म४यु "गोयमा" गौतम ! “सव्वत्थोवा" सीथी माछा “णेरड्यणपुसगा" નરયિક નપુંસકે છે. કેમકે –તેઓનું પ્રમાણ આંગળ માત્રમાં જેટલી પ્રદેશ રાશિયો છે, તેને તેનાજ પહેલા વર્ગમૂળથી ગુણતા જેટલી પ્રદેશ રાશી આવે છે, એટલી ઘનીકૃત લેકની से प्रदेशवाजी श्रेणियोमा रेसा मा अशी य छे. मेटसा छे. "देवपुरिसा असं. खेज्जगुणा" ना२४ नसो ४२ता हेवपुरुषो मज्यात गए पधारे हाय छे. म-तनु પ્રમાણ અસંખ્યાત જન કેટકેટિ પ્રમાણ સેઈમાં જેટલા આકાશ પ્રદેશે હેાય છે, જેટલી धनीतानी प्रदेशवाजी श्रेणियोभारदा मा प्रदेश छ, ४ छ, "देविस्थीओ संखेज्जगुणाओ" हेवस्त्रिया-हेवायो हेव ३५ो ४२त सध्यात गणी वधारे छे. उभ –દેવિયોનું પ્રમાણ દેથી બત્રીસ ગણું વધારે કહેલ છે. આ રીતે આ ચોથું અલ્પ બહુ
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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