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________________ - - - - - जीवाभिगमसूत्रे ५८२ नाम् अत्र यावत्पदेन अकायिक तेजस्कायिक वायुकायिकैकेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकानां संग्रहो भवति वेदियतेइंदियचउरिदिय पंचिंदियतिरिक्खजोणियणपुसगाणं' द्वीन्द्रियत्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुंसकानाम् जलयराणं जलचरनपुंसकानाम् 'थलयराणं' स्थलचरनपुंसकानाम् ‘खहयराणं खेचरनपुंसकानाम् “मणुस्सणपुंसगाणं मनुष्यनपुसकानाम् कम्मभूमिगाणं कर्मभृमिक मनुष्यनपुसकानाथ 'अकरमभूमिगाणं अकर्मभूमिक मनुष्यनपुंसकानाम् अंतर दीवगाणय अन्तरद्वीपकामनुष्यनपुसकानां च एतेषां मध्ये कयरे कयरे हितो कतरे कतरेभ्य अप्पावा अल्पावा वहुयावा बहुका वा तुल्या वा तुल्या वा 'विसेसाहियावा विशेषाधिका वा भवतीति प्रश्नः भगवानाह गोयमा इत्यादि गोयमा हे गौतम ! 'सव्वत्थोवा' सर्व स्तोका'-सर्वेभ्योऽल्पियांस' 'अहेसत्तमपुढवीणेरइयणपुसगा' अध. सप्तमपृथिवीनैरयिकनपुंसका:-सप्तमतमतमापृथिवीनैरयिकनपुसका भवन्ति सप्तमनारकनपुंसकापेक्षया, लट्ठपुढवीणेरइय णपुंसगा असंखज्जगुणा षष्ठ पृथिवीनारक नपुसका असख्येयगुणा अधिका भवन्ति जाव दोच्च र्तियग्योनिक नपुंसकों के, वायुकायिक एकेन्द्रि तिर्यग्योनिक नपुसको के तथा "वेइंदिय तेइंदिय चउरिदिय पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिय णसगाणं" दोडन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसको के तेइन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुसको के चौडन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसको के और पंचन्द्रियर्तियग्योनिक नपुसको के "जलयराणं" जलचर नपुंसको के “थलचराणं" स्थलचर नपुंसको के "खय राणं” “खेचरनपुसको के मणुस्स णपुसगाणं" मनुष्यनपुसकों के "कम्मभूमिगाणं" कर्म भूमिक मनुष्य नपुंसको के “अंतरदीव गाणय" अन्तर द्वीपक मनुष्य नपुंनसको के बीच में "कयरे कयरेहितो अप्पावा, बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहियावा" कौन मनुष्यनपुसक किन मनुष्यनपुंसको से अल्प है ? कौन किनसे बहुत है ? कौन किनसे तुल्य है ? और कौन किनसे विशेषाधिक हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते है-"गौयमा ! सव्वत्थोवा अहे सत्तम पुढवीनेरइयणपुंसगा" हे गौतम ! सबसे कम अधःसप्तम पृथिवी के नैरयिक नपुंसक ચાવત વનસ્પતિકાયિક એક ઇંદ્રિય વાળા તિર્થગેનિક નપુ સકેમાં ચાવતુ પદથી અપકાયિક એક ઇંદ્રિયવાળા તિગેનિક નપુંસકમાં તેજસ્કાયિક એક ઈદ્રિયવાળા તિર્યોનિક નપું. सीमा वायुायि मेद्रिय वा तिय-योनि नसi "बेइंदिय तेइंदिय-चउरिदिय पंचिदिय तिरिक्ख जोणिय णपुंसगाण" मेद्रिय पाप, त्रशु द्रियाणा तिर्थया નિક નપુંસકેમાં ચાર ઈદ્રિયવાળા તિગેનિક નપુંસકામાં અને પાંચ ઈદ્રિયવાળા તિર્યો न नसभा 'जलयराणं" raय२ नसभा "थलयज्ञाण" स्थाय२ नसभा “खह यराण" ५२ नसमा "मणुस्सणसगाण" भनुष्य नसभा 'कम्मभूमिगाणं" भभूभिन! मनुष्य नसभा "अंतरदीवगाण" मने ममभूमिना मनुष्य नसभा 'कयरे कयरे हितोअप्पा वा बहुया वा तुल्लावा विसेसाहिया वा" या मनुष्य न५ सध्या मनुष्य નપુસકે કરતાં અ૯પ છે? કેણ કેનાથી વધારે ? કોણ કેની બરાબર છે ? અને કેણુ તેનાથી विशेष भ[५४ छ ? गौतम स्वामीना मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४९ छे 3-"गोयमा !
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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