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________________ ५४० जीवाभिगमसूत्रे यितव्या, तथाहि--द्वीन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकस्य जघन्येनान्तर्मुईतमुत्कर्पण द्वादशवर्षाणि त्रीन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसकस्य स्थितिर्जघन्येनान्तर्मुहूर्तमुत्कर्पत एकोनपञ्चाशद्रात्रिंदिवानि । चतुरिन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकस्य जघन्येनान्तर्मुहूर्तमुत्कर्पतः पण्मासा. ॥ 'पंचिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगस्त णं भंते' पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुंसकस्य खल भदन्त ! 'केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता' कियन्त काल स्थिति. प्रज्ञप्ता कथितेति प्रश्न , भग. वानाह 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा हे गौतम ! 'जहन्नेण अंतो मुहुत्त' सामान्यत. पचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुंसकस्य स्थितिर्जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् 'उक्कोसेणं पुन्चकोडी' उत्कर्पण पूर्वकोटिः जघन्योत्कर्पाभ्यामन्तर्मुहर्तपूर्वकोटिप्रमाणा स्थितिर्भवतीति भाव. । 'एवं जलयरतिरिक्ख च उप्पयथलयर उरपरि सप्प भुयपरिसप्प खहयर तिरिक्खजोणिय णपुंसगाण सव्वेसि एवं जलजैसे-द्वीन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसक की जघन्य स्थिति एक अन्तर्मुहर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति बारह वर्ष की है. तेइन्द्रिय तिर्यग्नपुंसक की जघन्य स्थिति ४९, उननचास दिनरात की है. चौइन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसक की जघन्यस्थित एक अन्तर्मुहुर्त की है और उत्कृष्टस्थिति ६, छह मास की है. ___'पंचिदिय तिरिक्ख जोणिय णपुंसगस्स णं भंते !' हे भदन्त ! जो पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसक है-उसकी स्थिति कितने कालकी है ? उत्तर में प्रभु कहते है-'गोयमा' हे गौतम | 'जहन्नेणं अंतो मुहुत्त' सामान्यतः पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसक की जघन्यस्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की है और 'उक्कोसेणं पुन्चकोडी' उत्कृष्ट स्थिति एक पूर्वकोटि की है. 'एवं जलयरतिरिक्ख चउप्पय थलयर उरपरिसप्प भुयपरिसप्प खहयर तिरिक्खजोणियणपुंसगाणं सव्वेसिं पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसक जलचर स्थलचर और खेचर के मेद में तीन प्रकार के होते हैं । इनमें जलचर तिर्यग्योनिक नपुंसक को चतुष्पद स्थलचर उरपरिसर्प भुजपरिसर्प तिर्यग्योनिक જઘન્ય સ્થિતિ એક અંતર્મુહર્તની છે, અને ઉત્કૃષ્ટસ્થિતિ બારવર્ષની છે. ત્રણ ઇન્દ્રિયવાળા તિર્થંનિક નપુંસકેની જઘન્યસ્થિતિ એક અતર્મુહૂર્તની છે, અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ૪૯ ઓગણું પચાસ દિવસરાતની છે. ચાર ઈન્દ્રિયવાળા તિર્યનિક નપુ સકેની જઘન્યસ્થિતિ એક અંતમુહૂર્તની છે, અને ઉત્કૃષ્ટ સિથિતિ ૬ છ મહિનાની છે. "पंचिंदियतिरिक्खजोणिणपुंसगस्स णं भंते" लगपन्२ पाय छन्द्रियवाणातिय श्याનિક નપુસકો છે, તેઓની સ્થિતિ કેટલા કાળની કહી છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમस्वामीन छ है-गोयमा! ॥ गौतम ! जहन्नेण अंतोमुहुत्तं ॥ सामान्यत पाय-द्रयवाणा तिर्थयानि नधुसोनी धन्यस्थिति मे मत इतनी छ भने "उक्कोसेणं पुवकोडी Gष्टस्थिति में पूर्व मरिनाछ, “एवं जलयरतिरिक्खचउप्पायथलयरउरपरिसप्प भुयपरिसप्प खहयरतिरिक्त्रजोणिय णपुंसगाणं सम्वेसिं" पांयन्द्रियवा तियान ' नस જલચર, સ્થલચર અને ખેચરના ભેદથી ત્રણ પ્રકારના હોય છે. તેમા જલચર તિર્યનિક નપુંસકેની ચારપગા થલચર ઉરપરિસર્પ ભુજપરિસર્ષ તિર્યનિક નપુસકે અને ખેચર તિર્ય
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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