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________________ जीवाभिगमसूत्रे 2 सप्ततमतमा पृथिवीनारकन पुसकस्य जघन्येन द्वाविंशति सागरोपमाणि स्थितिरुत्कर्पतस्त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि स्थितिर्भवतीति ७, 'तिरिक्खजोणिय पुंसगस्स णं भंते' तिर्यग्योनिकनपुंसकस्य खलु भदन्त । 'केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?' कियत्कं काल स्थितिः प्रज्ञप्ता ' भगवानाह — 'गोयमा' हे गौतम! ' जहन्नेणं अंतो मुहुत्तं उक्को सेणं पुचकोडी' सामान्यतस्तिर्यग्योनिकनपुंसकस्य स्थितिर्जघन्येन अन्तर्मुहूर्तमुत्कर्पतः पूर्वकोटि, 'एगिंदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगस्स' एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिक नपुंसकस्य 'कालंठिई पन्नत्ता' कियन्तं कालंस्थितिः प्रज्ञप्ता इति प्रग्न, उत्तरमाह - ' जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं' उक्कोसेणं वावीसं वाससहस्साईं' सामान्यत' एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुंसकस्य 'केवडथ कालं 'टिई पण्णत्ता' कियन्तं कालं स्थिति पज्ञप्ता जघन्येनान्तमुहूर्तमुत्कर्षतो द्वाविंशति वर्ष सहस्राणि 'पुढ - बीकाइय एगिदियतिरिक्खजोणिय णपुंसगस्स णं भंते पृथिवीकायिकै केन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसकस्य खलु भदन्त ! 'केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता' कियन्तं कालं नरक की स्थिति जघन्य से २२, वाईस सागरोपम की है और उत्कृष्ट से ३३ तैंतीस सागरो पम की है ७, ‘तिरिक्ख जोणिय नपुंसगस्स णं भंते' हे भगवन् । तिर्यग्योनिक नपुंसककी 'केवइयं कालं ठिई पम्न्नत्ता' कितने काल की स्थिति कही गई है ? उत्तर मे प्रभु कहते हैं - हे गौतम जहणेणं अंतो मुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडी' सामान्य से तिर्यग्योनिक नपुंसक की स्थिति जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त्त की है और उत्कृष्ट स्थिति एक पूर्वकोटि की है. 'एगिंदीय तिरिक्खजोणिय पुंसगस्स णं' एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिक नपुंसकी कितने कालकी है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'जहन्नेणं अंतो मुहुत्त उक्कोसेणं वावीसं वाससहस्साई सामान्य से एकेन्द्रियतिर्यग् नपुसक की स्थिति जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट से २२, बाईस हजार वर्ष की है 'पुढची काइय एगिंदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगस्स णं भंते केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' हे भगवन् पृथिवीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुंसक की स्थिति कितने काल की कही है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'जहनेणं अंतो मुहुत्तं उक्कोसेणं वावीसं वाससहस्सा ' विशेष चिन्ता में पृथिवी સ્થિતિ જઘન્યથી ૨૨ બાવીસ સાગરોપમની છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી ૩૩ તેત્રીસ સાગરાપમની છે. ७ 'तिरिक्खजोणिय नपुसगस्स ण भते !" से लगवन् तिर्यग्योनि नपुं सनी 'केवइयं काल टिई पण्णत्ता" डेटला अणनी स्थिति उही छे उत्तरमा अनु छे!--"गोयमा !” हे गौतम ! “जहण्णेणं अतो मुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्यकोडी” समान्यपणाथी तिर्यग्योनि નપુ સકની સ્થિતિ જઘન્યથી એક અ તમુહૂતની છે. અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ એક પૂર્ણાંકાટિની છે. 'पर्गिदियतिरिक्खजोणियणपुसगस्स ण" ४ ४द्रिय वाणा तिर्यग्योनिङ नयु सहनी स्थिति डेटसा अपनी हेवामा भावी हे ? या प्रश्नना उत्तरमा प्रभु गौतम स्वामीने हे छे - ' जहण्णेणं अंतो मुहुत्त, उक्कोसेणं बावीस वाससहस्साइ" सामान्य पायाथी से छद्रियवाणा तिर्यग्योनि નપુસકેાની સ્થિતિ જઘન્યી અતર્મુહૂતની અને ઉત્કૃષ્ટથી ૨૨ ખાવીસ હજાર વર્ષની છે. 2 નપુ ५३८
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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