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________________ - प्रमेयद्योतिका टीका प्र० २ पुरुषाणामल्पबहुत्वनिरूपणम् ५१९ कल्पदेवपुरुषाः सख्यातगुणाः, आरणंकल्पदेवपुरुषापेक्षया प्राणतकल्पदेवपुरुषाः सख्यातगुणाः, प्राणतकल्पदेवपुरुषापेक्षया आनतकल्पदेवपुरुषाः सख्यातगुणा इति । इतोऽग्रे पश्चानुपूर्व्या अप्टमसहनारकल्पदारभ्य द्वितीयेशानकल्पदेवपुरुषपर्यन्तदेवपुरुषा यथोत्तरम् असंख्यातगुणा व्याख्येयाः, तथाचाह सूत्रकारः —–'सहस्सारे कल्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा, महासुक्के कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा, जाव माहिंदे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा' इति । आनतकल्पदेवपुरुषेभ्यः सहखारे कल्पे देवपुरुषा असख्यातगुणाः, एभ्यो महाशुक्रे कल्पे देवपुरुषा असंख्यातगुणाः, एभ्यः 'जाव माहिंदे' इति यावत् माहेन्द्रः, यावत्पदेन लान्तक - ब्रह्मलोक - कल्पयोर्ग्रहणं भवति, तथाहि महाशुक्रकल्पदेवपुरुषेभ्यो लान्तककल्पदेवपुरुषा असंख्यातगुणा एम्यो ब्रह्मलोककल्पदेवपुरुषा असंसंख्यात गुणे अधिक होते है, ऐसी व्याख्या करलेनी चाहिए। जैसे- अच्युत कल्प की अपेक्षा आरणकल्प के देव पुरुष सख्यात गुणे अधिक होते है । आरणकल्प के देवपुरुषो की अपेक्षा प्राणतकल्प के देव पुरुष संख्यात गुणे अधिक होते है । प्राणतकल्प के देव पुरुषो की अपेक्षा आनतकल्य के देवपुरुष सख्यात गुणे अधिक होते हैं । इसके आगे पश्चानुपूर्वी से ही आठवे - सहस्रारकल्प से लेकर दूसरे ईशान कल्पके देवपुरुष पर्यन्त सब पुरुष आगे आगे के असंख्यातगुणे अधिक होते है, ऐसा व्याख्यान कर लेना चाहिये यही सूत्रकार कहते है-'सहस्सारे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा, महासुक्के कप्पे देव पुरिसा असंखेज्जगुणां जाव माहिंदे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा' आनत कल्प के देव पुरुषो से सहस्रार कल्प के देव पुरुष असंख्यात गुणे अधिक होते है । सहस्रारकल्प के देव पुरुषों से महाशुक्र कल्प के देव पुरुष असंख्यात गुणे अधिक होते है । 'जाव माहि दे०' इति—–यहाँ से आगे माहेन्द्र कल्प के देव पुरुषो पर्यन्त के देव पुरुष एक एक की अपेक्षा असंख्यात गुणे अधिक होते हैं जैसे - महाशुक्रकल्प के देव पुरुषों से लान्तककल्प के देव पुरुष असंख्यातगुणे अधिक होते है लान्तककल्प के देवपुरुषो से ब्रह्मलोक कल्प के देवपुरुप अस આરણુ આરણુ કલ્પના દેવ પુરુષા સખ્યાત ગણા વધારે હાય છે કલ્પના દેવ પુરૂષા કરતા પ્રાણત કલ્પના દેવ પુરૂષો સ`ખ્યાત ગણા વધારે હાય છે પ્રાણત કલ્પના દેવપુરૂષો કરતાં આનત કલ્પના દેવ પુરુષો સખ્યાત ગણા વધારે હાય છે તેનાથી આગળ પચાતુપૂર્વિથી જ આઠમા સહસ્રાર કલ્પથી લઇ ને ખીજા ઈશાન કલ્પના દેવપુરૂષ પર્યન્ત બધાજ દેવપુરૂષા पछी पछीना सध्यात गया वधारे होय छे. तेभ समन्वु सूत्रभर मेन डे छे -' सहस्सारे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा महासुक्के कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा जाव माहिदे कुप्पे देवपुरिसा असं खेज्जगुणा" मानत કલ્પના દેવ પુરૂષો કરતાં सहसार ना हेव पुरुष असण्यात गया वधारे होय छे " जाव माहिंदे" इति ॥ આનાથી આગળ માહેન્દ્ર કલ્પના દેવ પુરૂષો સુધીના ધ્રુવ પુરૂષો એક એકની અપેક્ષાથી અસંખ્યાત ગણા વધારે હાય છે, જેમકે—મહાશુક્ર કલ્પના દેવ પુરુષા કરતાં લાન્તક
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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