SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 502
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नावामिगमंसूत्रे ।। . 11 अथ मनुष्य पुरुपप्रकरणमाह- मणुस्स पुरिसा णं भंते' इत्यादि, 'मणुस्सपुरिसा णं भंते ? मनुष्यपुरुषाः खलु भदन्त ! 'कालओ केवच्चिर होंति' कालतः कियध्वरं भवन्ति मनुष्यपुरुषास्तादृगपुरुषत्वमपरित्यजन्तः कियत्कालपर्यन्तमवतिष्ठन्ते । इति प्रश्न, भगवानाह - 'गोयमा ' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम खेत्तं पच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं' क्षेत्र प्रतीत्य क्षेत्राश्रयणेन जघन्येनान्तमुहूर्तं यावदवतिष्ठन्ते. 'उक्कोसेणं तिन्नि पलियोत्रमाई पुञ्चकोडि पुहुत्तमम्भहियाई उत्कर्षत स्त्रीणि पल्योपमानि पूर्वको टिपृथक्त्वाभ्यधिकानि 'धम्मचरण पढच्च जहन्नेणं अंतोमुहुतं' धर्मचरणं चास्त्रिधर्मं प्रतीत्य जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् 'उक्कोसेणं देणा पुञ्चकोडी' उत्कर्षेण देशोना पूर्वकोटिः । ' एवं सव्वत्थ' एवं यथा सामान्यतो मनुष्यपुरुषाणामवस्थानं कथित तथैव सर्वत्र सर्व पुरुषाणामपि, अवस्थानं ज्ञातव्यम् ' तत्राह -- 'जात्रा' इत्यादि, 'जाव पुव्व भाग की स्थितीवाले 'अन्तर 'द्वीप 'आदि' के 'खेचर' पुरुषों में उत्पन्न होता है उस की अपेक्षा से जानना चाहिये । तिर्यग्योनि प्रकरण समाप्त, 1 भ "' ૪૭૮ 1 1 + - 1 T 3 l "मणुस्स पुरिसा णं भंते! कालभो केवच्चिरं हौति" हे भदन्त ! मनुष्य पुरुषों की, कायस्थिति का काल कितना है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- " गोयमा खेत्त पडुच्च जहनेणं अतोमुहुत्त उक्को सेणं तिन्नि पलिओचमाई पुन्त्रको डिपुहुत्तमम्भहियाई” हे गौतम! मनुष्य पुरुषोंकी कार्यस्थिति का काल जघन्य से तो एक अन्तर्मुहूर्त का हैं थोर उत्कृष्ट से पूर्वकोटि- पृथक अधिक तीन पध्योम का है। “धम्मचरणं पच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं " चारित्र धर्म की अपेक्षा करके इसकी कार्यस्थिति का जघन्य से तो एक अन्तर्मुहूर्त का और 'उक्केसेणं' उत्कृष्ट से "देसूणा पुत्रकोड़ी" देशोन पूर्वकोटि का हैं, “एवं सव्वत्थ" इस प्रकार से जैसा यह सामान्य रूप से मनुष्य पुरुषों का व्यवस्थान काल - कायस्थिति का काल कहां है वैसा ही सर्वत्र सब पुरुषों को भी कायस्थितिका काल जानना चाहिए પડ્યેાપમના અસખ્યાતમા ભાગની સ્થિતિવાળા અંતરદ્વીપ વિગેરેના ખેચર પુરૂષામાં ઉત્પન્ન Til 1 थाय छे. ते अपेक्षा समन्वु આ રીતે 'તિય વ્યેનિક પ્રકરણ સમાપ્ત ז 1 1८ 'मणुस्सपुरिसा ण' भंते । कालओ केवच्चिरं होंति" है लगवन् मनुष्य युधानी, डाय સ્થિતિના કાળ કેટલા કહેલ છે. આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમ સ્વામીને કહે છે કે''गोयमा'! खेत्तं पडुच जद्दण्णेणं अतो मुहुर्त उक्कोसेण तिन्नि पलिओ माई पुञ्चकोडि पुहु"प्तमव्भहियाई” हे गीतभ मनुष्यं यु३षोनी अयस्थितिनो आज धन्यथा मे अतर्भु मुडूतना छेने उष्टथी पूर्व विधियायमा छे" "धम्मचरणं पडच जहण्णेणं अंतोमुहुत्त” यास्त्रि धर्मनी अपेक्षाथी तेयोनी अयस्थितित आज धन्यथा अंतर्भुत'ना 'उक्कोसेण' अने उत्सृष्टथी "देसूणा' पुन्चकोडी” हेशानपूर्व अटिने! छे. “एवं सव्वत्थ”च्या रीते, भेवी रीते या सामान्य भागाथी मनुष्य पुरषोनो व्यवस्थान आज - सेंटसे કે-કાર્યસ્થિતિના કાળ કહ્યો છે “એજ પ્રમાણે બધેજ પુરૂષોના કાયસ્થિતિને કાળ સમજી લેવા.
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy