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________________ जोधाभिगमसूत्रे, (महिला) भगवानाह - गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'जम्मणं पडुच्च' तत्रैव हैमवतैरण्यवतयोः जन्मप्रतीत्य - जन्माश्रयणेन 'जहन्नेण देखणं पलिओवमं पलिओ मस्स असंखेज्जइभागेणं कणगं' जघन्येन देशोन पल्योपमं पल्योपमस्या संख्येयभागेनोनम् पल्योपमस्य असंख्येय भागात्मकदेशेन ऊनं पल्योपमं यावत् हैमवताद्यकर्मभूमिकमनुष्यस्त्रीणां तादृश मनुष्य स्त्री रूपेणाव स्थानं भवतीति भावः। ‘उक्को सेणं पलिओनमं' उत्कर्षेण संपूर्ण पल्योपमं यावदवस्थानमिति 'संहरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं' सहरणं प्रतीत्य- सहरणापेक्षया तु जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् अन्तमुहूर्त्ताः शेषे एव तस्याः संहरणभावात 'उक्कोसेणं पळिओवमं देखणाए पुत्र कोडीए अब्भद्दियं' उत्कर्षेण देशोनया पूर्व कोट्याऽभ्यधिकमेकं पल्योपमं यावदवस्थानं भवति तच्चावस्थानमान देशोनपूर्व कोट्यायुष्कायास्तत्र सहरणे तत्रैव च मृत्वोत्पन्नाया ज्ञातव्यम् । 'हरिवास रम्मगवास कम्म भूमिगमणुस्सित्थी णं भंते ! हरिवासरम्पगवास अक्रम्म भूमिगमणुस्सि स्थिति कालओ कियच्चिरं भव' हरिवर्ष रम्यकवर्षाकर्मभूमिकम नुष्य स्त्रीणा भदन्त ! हरिवर्षर - ४२४ स्त्रियों के रूप में रहने का काल कितना है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- " गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जन्नेणं देणं पलिओवमं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं " हे गौतम! इनका अवस्थान काल जघन्य से तो देशोन पल्योपम के असंख्यातवें भाग से हीन एक पल्योपम का है और 'उक्को सेणं पलिओवमं' उत्कृष्ट से पूरा एक पल्योपम का है अधिक से अधिक इतने समय तक हैमवत और ऐरण्यवत की मनुष्य स्त्री मनुष्य स्त्री रूप से अवस्थित रह सकती हैं । "संहरणं पडुच्च जन्नेणं अंतो मुहुत्त उक्को सेण पलिओचमं देणार पुञ्चकोडीए अन्भहियं" संहरण की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त्त प्रमाण आयु के शेष रहते उसका संहरण हो जाने के कारण जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त्त तक और उत्कृष्ट से देशोन पूर्व कोटि से अधिक एक पल्योपम तक रहती है यह प्रमाण देशोन पूर्वकोटि आयु की स्त्री का संहवणहोने पर वह वहीं मरकर वहीं उत्पन्न होने वाली स्त्री की अपेक्षा से समझना चाहिये । "हरिवास रम्मग वास अकम्म भूमिगमणुस्सित्थीणं भंते " हे भदन्त ! जो हरिवर्ष और रम्यक वर्ष की अकर्ष स्वाभीने ४हे छे डे- "गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहण्णेणं देणं पालमवमं पलिओषमस्स असंखेग्नहभागेणं ऊणगं" हे गौतम! तेयोन। अवस्थाव क्षण धन्यथी देशोन पहयेोयभना असध्यातमा लागथीडीन मे पयोभ नो छे भने “उक्कोसेणं पलिओमं ष्टथी पूरे એક પલ્યાપમના છે વધારેમાં વધારે આટલાકાળ સુધી હૈમવત અને અરણ્યવતની મનુષ્ય स्त्री भनुष्य स्त्री यथाथी रही शठे छे “संहरण पहच्च जपणेण अंतोमुडुत्तं उक्कोसेणं पलिओचमं देणार पुव्वकोडीप अव्भद्दियं" सहरगुनी अपेक्षाथी मतभुहूर्त प्रभानु આયુષ્ય બાકી રહે ત્યારે તેનું સહરણુ થઈ જવાના કારણથી જઘન્યથી એક અતસુ હૂંત સુધી અને ઉત્કૃષ્ટથી દેશેાન પૂર્તિ થી વધારે પલ્યાપમ સુધી રહે છે. આ પ્રમાણ દેશન પૂર્વ કાટિની આયુષ્યવાળી સ્ત્રીનું સ‘હરણ થાય ત્યારે તે ત્યાં જ મરીને ત્યાં જ ઉત્પન્નથવા વાળી स्त्रीनी अपेक्षाथी सभनवु लेये. “हरिवासरम्भगवास अकम्मभूमिगमणुस्सित्थी णं भते !
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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