SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 417
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयोतिका टीका प्रति० २ देवस्त्रीणां भवस्थितिमावनिरूपणम् ३९७ स्त्रीणां जघन्यतो दशवर्षसहस्राणि स्थिति भवति 'उक्कोसेणं अद्धपलिओवर्म' उत्कर्षेणार्द्ध पल्योपमप्रमाणा स्थिति भवति सामन्यव्यन्तरदेवत्रीवदेव विशेषव्यन्तरविशेषपिशाचादिदेव स्त्रीणामपि जघन्यतो दशवर्षसहस्राणि उत्कर्षतोऽर्द्धपल्योपमप्रमाणा स्थितिः वेदितव्येति । 'जोइसियदेवित्थीणं भंते !' ज्योतिष्कदेवस्त्रीणां भदन्त | 'केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता-कथितेति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! जहन्नेणं पलिओवमअट्ठभागं' जघन्येन पल्योपममष्टभागम् एकस्य पल्योपमस्याष्टम--- भागपरिमिता स्थितिर्भवतीति भावः, 'उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्सेहि अब्भहियं' उत्कर्षेणार्द्ध पल्योपमं पञ्चाशद्वर्षसहस्रैरभ्यधिकम् , स्थिति भवति ज्योतिप्कदेव स्त्रीणामिति ॥ तदेवं सामान्यतः ज्योतिष्कदेवस्त्रीणां स्थितिं प्रदर्श्य विशेषतो ज्योतिष्कदेव एक पल्यापम की है "वाण मंतरीणं जहन्नेणं दसवाससहस्साई उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं" वानव्यन्तर देवों की नो देवियां है उनकी स्थिति जधन्य से दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट से आधे पल्योपम की हैं जिस प्रकार से यह सामान्य रूप से व्यन्तर देवियों की स्थिति कही कई है उसी प्रकार से व्यन्तर देवों के भेद रूप पिशाच देवो के देवियो की भी यही स्थिति है ऐसा जानना चाहिये । अर्थात् पिशाच आदि व्यन्तरे देवो के देवियों को सब की स्थिति जघन्य से दस हजार वर्ष को है और उत्कृष्ट से आधे पल्योपम की है । "जोइसियदेवित्थीणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता" हे भदन्त ! ज्योतिषिक देवो के देवियों की स्थिति कितने काल को कही गई है ? "गोयमा ? जहन्नेणं पलिओचमअट्ठभागं उक्के सिणं अद्ध पलिओवमं पण्णासाए वाससहस्सेहिं अभहियं" हे गौतम ! ज्योतिष्क देवों के देवियों की जघन्य स्थिति एक पन्य के आठवें भाग प्रमाण है और उत्कृष्ट स्थिति आधे पल्यापम की है इसमें उत्कृष्ट स्थिति में-पचास हजार वर्ष और अधिक हैं। इस "वाणमंतरीण जहण्णेणं दसवोससहस्साई उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं" पानव्य तर देवानी જે દેવિ છે, તેમની સ્થિતિ જઘન્યથી દસ હજાર વર્ષની છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી અર્ધામની છે. જે પ્રમાણે આ સામાન્ય પણાથી વ્યંતરદેવિયની સ્થિતિ કહી છે, એ જ પ્રમાણે વ્યંતરદેવાના ભેદરૂપ પિશાચની દેવિયેની સ્થિતિ પણ એ જ પ્રમાણેની છે તેમ સમજવું અર્થાત–પિશાચ વિગેરે વ્ય તર દેવેની બધી જ દેવિયેની સ્થિતિ જઘન્યથી દસ હજાર वर्षनी छ, भने थी मधी पक्ष्या५भनी छे. "जोइसियदेवित्थीण भंते । केवइयं काल ठिई पण्णत्ता" भगवन् ! ज्योति हेवोनी लियोनी स्थिति ४८सा आनी वामां भावी छ ? "गोयमा ! जहाणेणं पलिओवमअट्ठभाग उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णा. साए वाससहस्सेहिं अमहियं" गौतम याति हेवानी हवीयानी धन्य स्थिति એક પોપમના આઠમા ભાગ પ્રમાણુની છે. અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ અર્ધા પલ્યોપમની છે. આમાં–ઉત્કૃષ્ટસ્થિતિમાં--બીજા પચાસ હજાર વર્ષ વધારે છે. આ રીતે પચાસ હજાર વર્ષ
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy