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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० १ नैरयिकेभ्य उपपातो भवति तदा सप्तमनरकवर्जेभ्य एव भवति, तदुक्तम् - 'सत्तममहिनेरइया, तेऊवाऊअनंतरुन्वट्टा ! गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्य निरूपणम् ३२९ नव पावे माणुस्सं तव असंखेज्जावासाउया सच्चे ' ॥ सप्तममहीनैरयिकाः तेजस्कायिका वायुकायिका अनन्तरवृत्ता । नैव प्राप्नुवन्ति मानुष्यं तथैवासख्ये यवर्षायुष्का सर्वे ॥ इतिच्छाया यदि मनुष्याणामुपपातस्तिर्यग्योनिकेभ्यो भवति 'तिरिक्खजोणिएहिंतो उववाओ' तिर्यग्योनिकेभ्यो मनुष्याणामुपपातस्तदा- 'असंखेज्जवासा उयवज्जेहिं' असख्येयवर्षायुष्क वर्जेभ्य एव तिर्यग्योनिकेभ्यो भवतीति । 'मणुस्सेर्हि अकम्मभूमगअंतरदी वगअसं खेज्जवासाउयवज्जेहिं' यदि मनुष्येभ्य एव उपपातो भवति मनुष्याणां तदा-अकर्मभूम कान्तरइनका उत्पाद नहीं होता है क्योकि सातवीं नरक का नारकी मरकर नियम से तियेच की पर्याय में जन्म लेता है सोही कहा – “सत्तममहिनेरइया" इत्यादि । - सातवीं नरक का नारकी तथा तेजस्कायिक एवं वायुकायिक मरकर मनुष्य नहीं होता है तथा असंख्यातवर्ष की आयुवाले मनुष्य एवं तिर्यञ्च भी मनुष्य गति में उत्पन्न नहीं होते हैं यदि “तिरिक्खजोणिएहिंतो उववाओ" मनुष्यो का उत्पाद तिर्यग्योनिक जीवो में से होता है तो "असंखेज्जवासाऊयवज्जेहिं” असख्यात वर्ष की आयुवाले भोग भूमिया तिर्यग् जीवों में से नहीं होता है क्योंकि ये जीव सब मरकर देव गति में ही जन्म लेते हैं बाकी के तिर्यग्योनिकजीवों में से इनका उत्पाद होता है 'मणुस्सेहिं" यदि मनुष्यो में से इनका उत्पाद होता है तो असंख्यात वर्ष का आयुवाले अकर्मभूमि भोग भूमि के मनुष्यों में से एवं अन्तर द्वीपज मनुष्यों में से इनका उत्पाद नहीं होता है केवल कर्मभूमिज मनुष्यों में से કાના નૈયિકામાંથી થાય છે. એટલેકે સાતમી નરકના નૈયિકા માંથી તેની ઉત્પત્તિ મનુષ્યમાં થતી નથી. કેમકે-સાતમી નરકના નારકીયા મરીને નિયમથી તિર્યંચ નીપર્યંચ भाँ भन्म से छे. मे४ धुंछे है - "सत्तममहिने रइया " छत्याहि સાતમા નરકના નારકી તથા તેજસ્કાયિક અને વાયુકાયિક એ ત્રણ મરીને મનુષ્ય થતા નથી, તથા અમખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા મનુષ્ય અને તિય′′ચ પણ મનુષ્ય ગતિમાં उत्पन्न थता मथी ले “तिरिक्खजोणिपद्दितो उवधाओ" मनुष्योनी उत्यत्ति तिर्यग्यो नित्राण लोभांधी थाय तो "असंखेज्जवासा उवज्जेहिं" असंख्यात वर्षानी आयुष्यवाणा ભાગભૂમિયા તિયગ્ જીવામાંથી થતી નથી કેમકે-એ જીવામરીને દેવગતિમાં જ જન્મ લે છે, એટલે કે-તેશિવાયના ખાકીના તિય ચૈાનિવાળા જીવે માંથી તેમની ઉત્પત્તિ થાય છે "मगुस्सेहि” ने मनुष्यो भांथी तेभनो उत्पाद - उत्पत्ति थाय तो असण्यात वर्षनी आयुપવાળા અકમ ભૂમિ ભેગભૂમિના મનુષ્યમાથી તથા અ તરદ્વીપજ મનુષ્યામાંથી તેમના ઉત્પાદ-ઉત્પત્તિ થતા મથી કેવળ કર્મ ભૂમિવાળા મનુષ્યેામાંથી તેએ ની ઉત્પત્તિ થાય છે, ४२
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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