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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० गर्भव्युत्क्रान्तिकस्थलचरजीवनिरूपणम् २९९ इमे जीवा गर्मजोर परिसर्पा इत ऊवृत्य यदि तिर्यग्गतिषु मनुष्यगतिषु च गच्छन्ति तदा सर्वेषु तिर्यक्षु सर्वेषु च मनुष्येषु गच्छन्ति न कुत्रापि प्रतिषेधः । 'देवेसु जाव सहस्सारा' देवेषु यावत् सहस्राराः, इमे गर्मजस्थलचरोरःपरिसर्पा इत उद्धृत्य यदि देवेषु गच्छन्ति तदा सहस्रारदेवपर्यन्तदेवेष्वेव गच्छन्ति न ततः परत आनतप्राणतादिषु गमनं भवतीति । 'सेसं 'जहा जलयराणं' शेषम्-शरीरद्वारावगाहनाद्वारस्थितिद्वारोद्वर्तनाद्वारातिरिक्तं सर्वं द्वारजातं गर्भजनलचरजीववदेव ज्ञातव्यमिति ॥ कियत्पर्यन्तं जलचरप्रकरणवदत्र ज्ञातव्यं तत्राह'जाव चउगइया' इत्यादि । 'जाव चउगइया चउ आगइया' यावच्चतुर्गतिकाश्चतुरागतिकाएते ऊरःपरिसर्पा इत ऊवृत्या नैरयिक तिर्यङ् मनुष्य देवगतिषु गच्छन्तीत्यतश्चतुर्गतिकाः, तथा नारकतिर्यमनुष्यदेवेभ्य उद्वृत्त्यात्र आगच्छन्तीत्यतश्चतुरागतिका. कथ्यन्ते इति । 'परित्ता आगे के नरको में नहीं जाते है । 'तिरिक्खमणुस्सेसु सम्वेसु' और ये सव तिर्यग्योनिको में जाते है तो समस्त तिर्यग्योनिकों में जाते है, और जब ये मनुष्यों में जाते है तो समस्त मनुष्यों में जाते हैं यहां कहीं पर भी इनके जाने में प्रतिबन्ध-निषेध नहीं है । "देवेमु जाव सहस्सारा" और जब ये देवों में जाते हैं तो प्रथम देवलोक से लेकर सहस्रार तक के अर्थात् आठवें देवलोक तक के देवों में जाते है आगे के देवों में नहीं जाते । “सेसं जहा जलयराणं" इस प्रकार शरीरद्वार अवगाहनाद्वार, स्थितिद्वार और उद्वर्तना (निकलना) द्वार के अतिरिक्त और सब द्वारो का कथन यहां गर्भज जलचर जीव के प्रकरण में जैसा इनका कथन किया गया है वैसा ही जानना चाहिये 'जाव' यावत् "चउ गहया चउ आगइया" ये चतुर्गतिक, और चतुरागतिक होते हैं । ये उरःपरिसर्प यहां से उद्धृत्त होकर नैरयिको में भी जा सकते हैं, तिर्यग्योनिको में भी जा सकते हैं, मनुष्यों में भी जा सकते हैं और देवो में भी जा सकते हैं । मणुस्सेसु सम्वेतु" मन न्यारे तेगा तिय ज्योनिमा तय छ, त समातिय यानिકેમાં જઈ શકે છે અને જ્યારે તેઓ મનુષ્યોમાં જાય છે, તે સઘળા મનુષ્યમાં જાય छ. माडियां, ज्यांय ५९ मत पानी प्रतिम-निषेध थयेस नथी. "देवेसु जाव सहस्सारा" मन न्यारे तमा वाम तय छ, तो पडसावताथी सन ससार सुधीन। અર્થાત્ આઠમા દેવલેક સુધીના દેવામાં જાય છે તેથી આગળના દેવામાં જતા નથી, "सेसं जहा जलयराणं" 241 रीते शरीरवार, अवगाहनावार, स्थितिद्वार मन तना દ્વારના કથન શિવાયના બાકીના બધા કારનું કથન ગર્ભજ જલચર જીના પ્રકરણમાં જે પ્રમાણે કહેલ છે, એ જ પ્રમાણેનું કથન અહિયાં સમજી લેવું. "जाव" यावत् "चउगइया चउआगइया" म! यारगति वा म२ यार मागतिવાળા હોય છે. આ ઉરઃ પરિસર્પે અહિંથી એટલેકે ઉરઃ પરિસર્ષ પણાથી ઉવૃત થઈતને-નીકળીને નૈરયિકમાં પણ જાય છે, તિયનિકેમાં પણ જાય છે. મનુષ્યમાં પણ જાય છે, અને દેવોમાં પણ જઈ શકે છે. આ રીતે ચારે ગતિમાના જીવે અહિંયા આવી શકે છે.
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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