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________________ २३ जौवाभिगमन जलचरेपु मध्ये के ते मत्स्याः , इति प्रश्नः, उत्तरयति प्रज्ञापनातिदेशेन- 'एवं जहा' इत्यादि, ‘एवं जहा पण्णवणाए जाव' एवम्-उक्तप्रकारेण मत्स्यादीनां शिशुमारपर्यन्तानां जलचराणां भेदो यथा प्रज्ञापनायां-प्रज्ञापनानामकसूत्रस्य प्रथमपदे कथितस्तथैव इहापि वक्तव्यः, कियत्पर्यन्तं प्रज्ञापनाप्रकरणं वक्तव्यं तत्राह-'जाव' इत्यादि, 'जाव' तावत् पर्यन्तं वक्तव्यं यावत् 'सुसुमारा एगागारा पण्णत्ता से तं मुंमुमारा' इति पर्यन्तम् , प्रज्ञापनाप्रकरणं चेत्थम्'मच्छा अणेगविहा पण्णत्ता तं जहा-सण्डमच्छा खवल्लमच्छा जुंगमच्छा विज्झडियमच्छा हेलियमच्छा मगरिमच्छा रोडियमच्छा हलीसागरा गागरा वडा वडगरागल्भया तिमीतिमिगिला णक्का तंदुलमच्छा कणिक्कमच्छा सलिसत्थिया मच्छा लंभणमच्छा पडागा पडागाइपडागा. जे यावन्ने तहप्पगारा से तं मच्छा । से किं तं कच्छभा ? कच्छभा मत्स्य कच्छप मगर ग्राह और शिशुमारक "से किं तं मच्छा" हे भदन्त पांच जलचरों के बीच . में मत्स्यों के कितने मेद है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं "एवं जहा पण्णवणाए जाव से तं मुसुमारा" प्रज्ञापना के प्रथम पद में जिस रूप से मत्स्य ,कच्छप, मगर, प्राह शिशुमारों के भेद कहे गये है उसी रूप से उन पांचों जलचरों के भेद यहां पर भी कह लेना चाहिये 'जाव' यावत् ‘से त सुंसुमारा' इम पद तक वह प्रज्ञापना प्रकरण पूरा टीका में दिया गया है'मच्छा' उसका अर्थ इस प्रकार है-मत्स्य अनेक प्रकार के कहे गये है-जैसे स्निग्धमत्स्य, खवल्लमत्स्य, जुंगमत्स्य, विज्झडिंक मत्स्य, हेलितमत्स्य, मगरीमत्स्य' रोहितमत्स्य, हलीसागरमत्स्य, गागरा वहा, वटकरागभयमत्स्य, तिमि तथा तिमिंगलमत्स्य, णकमत्स्य, तन्दुलमत्स्य, कणिकमत्स्य, सालिस्वस्तिकमत्स्य, पताकामत्स्य, पताकातिपताकामत्स्य, इनका स्वरूप मत्स्य, ४२७५ (या) म४२-भघ२ ग्राड मने सिसुभा२४ "से कि तं सच्छा' 3 . વાન પાંચ પ્રકારના જલચર પૈકી મના કેટલા પ્રકાર ના ભેદે કહેલા છે? આ પ્રશ્નના उत्तरभां प्रभु ४ छ है-"एवं जहा पण्णवणाए जाव से तं सुसुमारा" प्रज्ञापन! सूत्रना પહેલા પદમાં જે પ્રકારથી મત્સ્ય, માછલા, કરછપા-કાચબા, મઘર ગ્રાહ અને શિશુમાંના ભેદે કહ્યા છે, એજ પ્રમાણે તે પાંચ પ્રકારના જલચરોના ભેદો અહિયાં કહેવા જોઈએ. 'जाप" यावत् ‘से त्त सुंसुमारा" •मा ५६ सुधीन सयरे। असय ४२वा ते प्रज्ञापना સૂત્રનું પ્રકરણ સંસ્કૃત ટીકામા આપેલ છે. "मच्छा" मा पहने। म मा प्रभार छ. मत्स्य सन: प्रा२ना सा छे. २म કે–સ્નિગ્ધ મત્સ્ય-અવલ માસ્ય જુગમસ્ય, વિજઝડિમમસ્ય, હિલિત મત્ય, મગરીમસ્ય, રોહિતમસ્ય, હલીસાગરમસ્ય, ગાગરા વટા, વટકરા ગભયમસ્ય, તિમિ તથા તિમિંગલમસ્ય, શુકમસ્ય, તંદુલમસ્ય, કણિમસ્ય સાલિસ્વસ્તિકમસ્ય પતાકામસ્યા પતાકાતિ પતાકામસ્ય, આ બધા મસ્યાનું સ્વરૂપ અને નામે લેકવ્યવહારથી જ સમજી લેવા.
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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