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________________ जाव और फर्म- विचार । [ २६३ t नवमें गुण स्थानके नौ विभाग माने है उनमें कमसे नीचे ीि प्रकृतियोंका क्षय होता है । प्रथममागने - स्त्यानगृद्धि १ नद्रा निद्रा २ प्रचलाप्रचला ३ नरकगति ४ निर्यग्गति ५ एकेद्रिय जाति ६ द्वीन्द्रिय जाति ७ तीन इन्द्रिय जाति ८ तुरिन्द्रिय जाति नरकगति प्रायोग्यानु पुव्व १० तिर्यगति मनु पुर्च ११ मत १२ उद्योत १३ स्थावर १४ सूक्ष्म १५ साधारण १६ इन सोलह प्रकृतियोंका क्षय नवमें गुण स्थान के प्रथम भाग में होता है । द्वितीयभागमें- अप्रत्याख्यान कोध १ मान २ माया ३ लोभ ४ प्रत्याख्यान क्रोध ५ मान / माया ७ लोभ ८ इन आठ कम प्रकृतियोंका क्षय नवमें गुण स्थानके द्वितीयभागमें होता है । तृतीयभागमें - नपुंसक वेदका क्षय होता है । चतुर्थभाग-स्त्रीवेदका क्षय होता है । पचमभागमें - हास्य १ रति २ अति ३ शोक ४ भय ५ जुगुसाई इसप्रकार न गुणस्थानके सबमें भागमें क्षय होता है । छठे भागमें- पुंवेदका क्षय होता है । सप्तम भाग में संज्वलन कोधका क्षय होना है आठवे भागमें संज्चलन मानका क्षय होता है । नव भाग में - संज्वलन मायाका क्षय होता है भ इस प्रकार नवमें गुण स्थानके नत्र विभागों में छत्तीस फम प्रकृतियों का क्षय होता है । दशवे गुणस्थान में संञ्चलन लोभका क्षय होता है चारहव
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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