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________________ जीव और धर्म-विचार। [२४६ शानावणादि में प्रकृतियों के योग्य सूक्ष्म (अतीन्द्रिय) मनन पुन परमाणुको अत्मा अपने मन वचन कायके व्यापारसे अपने आत्मा के समस्त प्रदेशों के साथ चारों तरफ (ऊर्य अधः तिर्यग रूपले ) एक क्षेत्रावगाहा संश्लेप रूर संवध करता है उसको प्रदेशबंध कहते हैं। प्रदेशबंध पुनरमाणु के प्रदेशोंकी गणना होती है एक साथ एक आत्मामें मन कवन कायके पृथक पृथक व्यापार द्वारा जिनने अनंत या अननानत पुद्गल परमाणु भात्मा के समस्त प्रदे: शोके साथ पास एक क्षेपाचगाहो हाते हैं मो प्रदेश वत्र है। धर्मवध चाहे मन याग हो, चाहे बचन योग हो, चाहे काय योग हा, परन्तु एक स थ पुद्गल परमाणु -नन संख्यामें ग्रहण होते है। समय समयमें पुद्गल परमाणु पिड श्नत संख्यामे ग्रहण होते है । उसको प्रदेशवध रहते हैं । जिन्ने प्रदेशों (परमाणुओं) की संख्याको लेकर वध होता है । इमोका नाम प्रदेशवध है। कमसे कम उन पुद्गल परमाणुमोको सख्या (जो समय प्रवद्ध होकर आत्माके साथ सबध होते है ) अनंत रूप है । सिद्ध राशिसे भनंन भागमय है। अननके मनत भेद हे सो कम (s मध्यम-उत्कृष्ट रूपसे भा विचार किया जाय तो भी समस्त अनंत रूप ही होगा। पोछेसे उसमें कर्म प्रकृतियोंके योग्य विभाग होता है इसलिये प्रदेशवेधको सामान्य यही अर्थ होता है कि उन पुगाल परमाणु.. मोकी संख्याका प्रबंधारण कितना है।
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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