________________
ata मोर सर्म-वार /
[ १५५
अनंतानुवन्धी लोम फपायके उदयसे यह जीव शरीर धन संपत्तिमे बहंदि धारणकर यह मेरा यह मेरा यह मेरा इस प्रकार मेरे भावको धारणकर शरीर धन संपत्ति के दिये घोर हिंसा करता है झूठ बोलना है । वोरो करना है। पस्त्री सेवन करना है और पापादिक सार कार्य में ममय करता है इस प्रकार सम पापका मूल एक लोभक्याय दी है। "लोभ मूलानि पापानि” समस्त पापोंका मूल लोभ दी है। नंत्यन गृद्ध लोभके अधीन होकर धर्म कर्मको प्रत्यक्ष मनुष्य भूल जाता है भाई पन्धु और माता पिता गुरुजनों को दुश्मन मान देता है, आत शेत्र परिणाम करता है, अग्निमें पढता है। शुद्ध लड़कर मरता है, समुद्र गिरता है। आकाशमें उड़ता है और विषम आपत्तियों को प्राप्त होना है ऐसा कोई भी पापकार्य नहीं है जिनको लोभी मनुष्य नहीं करता है ।
जगतमें घेर विरोध विश्वासघात अन्याय और जोरजुल्म सब लोकपाय वशीभूत हो करना पड़ता है परन्तु सबसे भयंकर लोभ यह है उसे प्राणी धर्म ओर मदावारको छोड़कर स्वयं अधर्ममें पापकार्यो में मस्त हो जाय व अन्य जीवोंको धर्ममार्ग छुडाकर अधर्ममें लगा देवे 1 कुदेव कुशास्त्र और कुगुरु की प्रोति करा देवे ।
(
आज कितने ही सुधारक लोभके वशीभूत होकर धर्मको ही नहीं छोड़ते हैं किन्तु मिथ्याधमको स्वयं सेवन करने लग जाते है कुशास्त्रोंको सत्य मानने लग जाते हैं और सत्यशास्त्रों क
•