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गोव और वर्म-विवार।
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स्माके गुणोंको बहुन कालपर्यंत साचादित करे रहता । मोरमापर उसका असर भी तोपतर होता है जिससे आत्माके परिणामोंमें मू भाव देव जाग्रत पना रहता है। ऐसे क्रोधसे संयम मौर सदावारके कार्य सर्वधा नहीं होते हैं किंतु धैर-भाव मत्सर-पासलद द्व-लसाई मार फाट-हिंसा, जीववध-आर्त रोड परिणाम और तीन यातना भात्माले परिणामोंमें बनी रहती है। __ मनंतानुबंधी शोधके उदय असत् प्रवृत्ति, हिसामय धर्मकी भावना, मांस मद्य मधुमक्षण और निध लावरण जीवके हो जाते हैं।
जीवोंके चधमें यह सुख मानता है, जीववध वह अपनी मलाई मानता है और जीवश्वधमें वह भात्मक्ल्याण समझता है।
मनंतानुबंधी मान-जिस मानका उदय पर्वतके स्तम समान भवांतरमें भी नष्ट न हो। अधिक कालपर्यंत बसाही घमंड बना रहे वह अनंतानुबंधी मान बहा जाता है।
पर्वतका स्तम जिस प्रकार नम्रीभूत नहीं होता है, प्रयत्न करनेपरमी नम्रताको प्राप्त नहीं होता है ठीक इसी प्रकार अनं. हानुबंधी मान भी अनुनय विनय और नन्न प्रार्थना करनेपरमी मात्माके परिणामोंसे मानका अंश नाशको प्राप्त नहीं हो-अनेक जन्मांतर पर्यंत वैसाही मानका उदय मना रहे। मनमें कोमलता प्राप्त न हो वह अनंतानुबंधो मान है।
भनंतानुबंधी मानसे जीव ऐसे कृत्य करता है कि जिससे