SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * सूतक निर्णय * १६६ गृह दुन्दुभि बाजे | उम्र वंश तनु नोल चिह्न अहिराज विराजे । नव कर काय उतंग आयु शत वर्ष सुछाजे ॥ खड्गासन सम्मेदगिर मुक्ति थान मद कमठ हर । मन वच तनू बन्दन करों ते बीसम जिनराज वर ||२४|| वर्धमान पुष्पोत्तरसे कुण्डलपुर आये । सिद्धार्थ पितु त्रिशला माता लख सुख पाये || नाथ वंश ननु हेमवर्ण हरि चिन्ह मनोहर । सात हाथ तनु आयु बहत्तर अब्द लयोबर || खड्गासन पावापुरी मुक्ति थान जगताप हर । नवे नाथूराम नित हाथ जोड़ युग शीश धर ॥ २५ ॥ इति || ७३ सूतक निर्णय सूतक में देव शास्त्र गुरुका पूजन प्रक्षालादि तथा मंदिरजीका वस्त्राभूषणादिक स्पर्शनकी मनाई है तथा पात्रदान भी वर्जित है । सूतक पूर्ण होनेके बाद प्रथम दिन पूजन प्रज्ञाल तथा पात्रदान करके पवित्र होवे । सूतक विवरण इस प्रकार है । १, जन्मका दश दिन माना जाता है । २, स्त्रीका गर्भ जितने माहका पतन हुआ हो उतने दिनका सूतक मानना चाहिये, विशेषतः यह है कि यदि तीन माहसे कमका हो तो तीन दिनका सूतक मानना चाहिये । ३ प्रसूती स्त्रीको ४५ दिनका सूतक होता है। इसके पश्चात् वह स्नान दर्शन करके पवित्र होवे | कहीं २ चालीस दिनका भी माना जाता है । ४, प्रसूति स्थान एक माहतक अशुद्ध है । '१, रजस्वला स्त्री पांचवें दिन शुद्ध होती है । ६, व्यभिचारिणी स्त्रीके सदा ही सूतक रहता है, कभी भी शुद्ध नहीं होती । ७, मृत्युका सूतक १२ दिनका माना जाता है। तीन पीड़ीतक १२ दिन, चौथी पीड़ोमें ६
SR No.010386
Book TitleJinvani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kasturchand Chavda
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy