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________________ * मोहनलालकृत * १३१ स्नु नूपुर ध्वनि ठुमकि २ पेंजन पण झुन झुनझुन किन छवि लगति अति प्यारी ॥ १ ॥ अ न न न न'सार दानि स न न न न न किनरान अघ घ घ गंधवं सर्व देत जहां तारी ॥ २॥ पं पं पं पग पटि फं फं फ फ न न न न न वं व मृदङ्ग बाजे बीना धुन सारी ॥ ३ ॥ अ द द द द द विद्याधर दि दिदि दिदि दि देव सकल दास भमानी ज्यो कहें जिन चरनन बलिहारी ॥ ४ ॥ ५२ मानिककृत भजन नहीं रुचे औरु छवि नैननमें, तेरो शान्ति छवी मन बस गई रे ॥ टेक ॥ निर्विकार निर्मथ दिगम्बर देखत कुमति विनसि गई रे ॥ १ ॥ चिर मिथ्यातम दूर करनको चन्द्र कला सो दरश रही रे ||२|| मानिक मन मयूर हरषनकों मेघ घटा सो दरश रही रे || ३ || ५३ नवलकविकृत खम्माच आज कोई अदभुत रचनारचो ॥ टेक ॥ समोशरण शोभा देखनको होड़ा होड़ी मत्री ॥ १ ॥ स्वर्ग विमान तले छवि जाके देखत मनन बिची ॥ २ ॥ जिन गुण स्वादत रसिया परनकी रोझन जात मचो ॥ ३ ॥ नवल कहे ऐसो मन आवे हष धार कर नवी ॥ ४ ॥ ५४ - मोहनलालकृत झांझोटी । देखि सखी छवि आज भलो रथ चढ़ि यदुनन्दन आवत हैं ॥ टेक ॥ तोन छत्र माथे पर सोहें त्रिभुवननाथ कहावत हैं ॥ १ ॥ मोर मुकट केसरिया जामा चोसठ चमर दुरावत हैं ॥ २ ॥ ताल मृदङ्ग साज सब बाजत आनन्द मङ्गल गावत है ॥ ३ ॥ मोहनलाल. जास चरननकी झुकि लुकि शील नवाबत हैं ॥४॥
SR No.010386
Book TitleJinvani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kasturchand Chavda
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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