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________________ * णमोकार महिमा प्रभाती # १२६ पशुवन पर दृष्टि परे नमत सुरनर मुनीन्द्रादिक वरत सोस नेत्रा ॥ ३ ॥ प्रभुके वरणार्विन्द जपत हैं जवाहरबन्द्र कर जोरें ध्यान घरे वाहत मित सेवा ॥ ४ ॥ ४६ दोतकृत प्रभाती पारस जिन चरण निरखि हरष ज्यों लहायो । चितवत चन्दा चकोर ज्यों प्रमोद पायो || टेक || ज्यों सुनि घनघोर सोर मोरके मन हरष ओर रंक निधि समाज राज पाय मुदित थायो ॥१॥ ज्यों जन विर क्षुधित कोय भोजन ल ह सुखित होय भेषज मद हरन पाय आतुर हरषायो ॥ २ ॥ बासर धनि आज दुरित दुरे फिर सुकृत आज शान्ताकत देखि महामोह तम बिलायो ॥३॥ जाके गुन जानन शोभानन भव कानन इमि जान दौल सरन आय शिव ललवायो ॥ ४ ॥ मुख ४७ दोक्तकृत प्रभाती निरस्त जिन चन्द्र चंदन सुपद स्वरुचि आई ॥ टेक ॥ प्रगटी निज आनकी पिछान ज्ञान भानकी कला उद्योत होत काम यामिनी पलाई ||१|| सास्वत आनन्द स्वाद पायो बिनसो विवाद मानन अमिष्ट इष्ट कल्पना नसाई ॥ २ ॥ साधी निज साधकी समाधि मोह व्याधिकी उपाधि कविराधिके अराधना सुहाई ||३|| धन दिन छिन आज सुगुन विंसे जिनराई । सुधरो सब काज ਲ अचल रिद्धि पाई ॥ ४ ॥ ४= यामोकार महिमा प्रभासी प्रातकाल मंत्र जपो णमोकार भाई । अक्षर पैतीस शुद्ध हृदयमें धराई ॥ टेक ॥ नर भव तेरो सुफल होत पातक टर जाई । विघन Ε
SR No.010386
Book TitleJinvani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kasturchand Chavda
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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