SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * जिनवाणी संग्रह * दुखहरण करण अभिनन्द शर्माको ॥ सुमति सुमति दातार तार भवसिंधु पारकर | पद्मप्रभ पद्माभ भाति भवभीति प्रीतिधर ॥ १६ ॥ श्रीसुपार्श्व कृत पास नाश भव जास शुद्ध कर । श्रीचन्द्रप्रभ चन्द्रकान्तिसम देहकान्ति धर । पुष्पदन्त दमि दोषकोश भवि पोष रोषहर । शीतल शीतल करन हरन भवताप दोपहर ॥ १७ ॥ श्रेय रूप जिन श्रेय धेय नित सेय भव्यजन । वासुपूज्य शतपूज्य वासवादिक भवभय हन ॥ विमल विमल मतिदेन अन्तगत हैं अनन्त जिन । धर्म शर्म शिवकरण शांति जिन शान्तिविधायिन ॥ १८ ॥ कुन्ध कुन्थ मुख जीवपाल अरनाथ जाल हर । मल्लि मल्ललम माह - मल्ल मारण प्रचार घर ॥ मुनिसुव्रत व्रत करण नमत सुरसंघहि नमि जिन । नेमिनाथ जिन नेमि धर्मरथ मांहि ज्ञान धन ॥ १६ ॥ पार्श्वनाथ जिन पार्श्व उपलसम मोक्षरमापति । बर्द्धमान जिन नमूं बम् भवदुःख कर्मकृत ॥ याविध में जिन संघरूप चउवीस संख्यधर । स्तऊ ं नमू ं हूं बार बार बंद शिवसुखकर ||२०|| पश्चिम वन्दना कर्म I बन्दू मैं जिनवीर धीर महावीर सु सन्मति वर्द्धमान अतिवीर बन्दों मनवचतनकृत || त्रिशलाननुज महेश धीश विद्यापति बंदू । बन्दू नितप्रति कनकरूपतनु पाप निकन्दू ||२१|| सिद्धारण नृपमन्द द्वंद्व दुखदोष मिटावन । दुश्ति दवानल ज्वलितज्वाल जगजीव उधारन ॥ कुण्डलपुर करि जन्म जगतजिय आनन्दकारन | वर्ष बहरि आयु पाय सब ही दुख टारन ||२२|| सप्त हस्त तनु तुङ्ग भङ्ग कृत जन्म मरण भय । बालब्रह्ममय ज्ञेय हेय आदेय ज्ञानमय ॥ दे उपदेश उधारि तारि भवसिंधु जीवधन । आप बसे शिवमाहिं 1 ११८
SR No.010386
Book TitleJinvani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kasturchand Chavda
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy