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________________ * दशन पाठ * ८६ - फल चढाना हो तो, नीचे लिखा श्लोक और मन्त्र पढ़कर चढ़ावे । क्षुभ्यद्विलुभ्यन्मनसाऽप्यगम्यान कुवादिवादाऽस्खलितप्रभावान् । फलैरलं मोक्षफलाभिसारैर जिनेन्द्रसिद्धान्तयतीन् यजेऽहम् ॥ ॐ ह्रीं मोक्षफलप्राप्तये देवशास्त्रगुरुभ्यः फल निर्वपामि ॥ यदि किसीको अर्घ चढ़ाना हो, तो नीचे लिखा श्लोक पढ़ें। सद्वारिगन्धाक्षतपुष्पजातेर नैवेद्यदीपामलधूपधू म्रः। फलेविचित्रर्धनपुण्ययोग्यान जिनेन्द्रसिद्धान्तयतीन् योऽहम् ॥ ॐ ह्रीं अनर्यपदप्राप्तये देवशास्त्रगुरुभ्योऽध । इम प्रकारके द्रव्योंमेंसे जो द्रव्य हो, उसी द्रव्यका श्लोक व मन्त्र पढ़कर वह द्रव्य चढ़ाना चाहिये। तत्पश्चात् नीचे लिखी दोनों स्तुतियां अथवा दोनोमेंस कोई एक स्तुति अवश्य पढ़नी चाहिये। २६ दौलतराम कृत स्तुति दोहा-साल ज्ञ य ज्ञायक तदपि, निजानन्दरसलीन । सो जिनेन्द्र जयवंत नित, अरिरजरहसबिहीन ।। जय वीतराग विज्ञानपूर । जय मोहतिमिरको हरनसूर ॥ जय ज्ञान अनन्तानन्तधार । द्वगसुख वोरजमण्डित अपार ॥ १ ॥ जय परमशांति मुद्रा समेत। भविजनको निज अनुभूति हेत ॥ भवि भागनवश जोगे वशाय । तुम धुनि ह सुनि विभ्रम नशाय ॥ २ ॥ तुम गुण चिन्नत निज पर विवेक । प्रघटे, विघटे आपद अनेक ॥ तुम जगभूषण दूषणवियुक्त । सब महिमायुक्त विकल्पमुक्त ॥ ३ ॥ अविरुद्ध शुद्ध चेतन स्वरूप। परमात्म परमपावन अनूप ॥ शुभ
SR No.010386
Book TitleJinvani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kasturchand Chavda
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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