SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिनवाणी संग्रह। चन्दन केशर गार, होय सुवास दशों दिशा । भवआ० ॥ ओं ह्रीं उत्तमादिदशलक्षणधर्माय चन्दन निर्बपामि ॥ २॥ अमल अखण्डित सार, तन्दुल चन्द्र समान शुभ ॥ भवआ० ॥ ओं ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय अक्षतान निर्यपामि ॥३॥ फूल अनेक प्रकार, महके ऊरधलोक लो । भबआ० ॥ ओं ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय पुष्पं निर्वपामि ॥ ४ ॥ नेबज विविध प्रकार. उत्तम पटरससंजुतं ॥ भवआ०॥ ____ओं ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय नैवेद्य निर्वपामि ।। बाति कपूर सुधार, दीपकजोति सुहावनी ॥ भवआ० ॥ ६ ॥ ____ओं ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय दीप निर्यपामि ॥ ६ ॥ अगर धूप विस्तार, फेले सर्व सुगन्धता ॥ भवा० ॥ ७ ॥ ओ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय धूपं निर्व पामि ॥ ६ ॥ फलकी जाति अपार, घ्राण नयन मनमोहने ॥ भवआ० ॥८॥ ____ओ ह्रीं उत्समक्षमादिदशलक्षणधर्माय फलं निर्वपामि ॥ ८ ॥ आठों दरब संभार' 'द्यामत' अधिक उछाह सों ॥ भवा० ॥६॥ ओं ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्मायार्घ्य निर्व पामि ॥ ८ ॥ अंग पूजा। सोरठा-पीडै दुष्ट अनेक, बांध मार बहुविधि करें। धरिये क्षिमा विवेक, कोप न कीजे पीतमा ॥ १ ॥ चौपाई मिश्रित गीताछन्द । उत्तम छिमा गहो रे माई । इहभव जस परभव सुखदाई ॥ गाली सुनि मन खेद न आनो । गुनको भौगुन कहै अयानो॥ कहि है अयानो वस्तु छीने, बांध मार बहुविधि करे। घरतें
SR No.010386
Book TitleJinvani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kasturchand Chavda
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy