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________________ जिनवाणी संग्रह। चरण धोना, वरणोदक मस्तकपर चढ़ाना, पूजा करना, मन शुद्ध रखना, विनयरूप बोलना, शरीर शुद्ध रखना शुद्ध आहार देना। दातारके सात गुण-श्रद्धावान्, शक्तिवान्, अलोभी, दयावान्, भक्तिवान्, क्षमावान् और विवेकवान् ।। दाताके पांच भूषण-आनन्दपूर्वक देवे, आदरपूर्वक देवे प्रिय वचन कहकर देवे, निर्मल भाव रखे, जन्म सफल माने । दाताके पांच दूषण-बिलम्बसे देवे, विमुख होकर देवे, दुर्वचन कहकर देवे, निरादर करके देवे, देकर पछतावे । (४७) ग्यारह प्रतिमाओंका सामान्य स्वरूप । प्रणम पंच परमेष्टि पद, जिन आगम अनुसार, श्रावकप्रतिमा एक दश, कटु भविजन हितकार ॥ १ ॥ सवैया ३१ ॥ श्रद्धाकर व्रत पाले सामयिक दोष टाले, पौसौ मांठ सचित कौं त्यागेंलों घटायक रात्रिभुक्त परिहरै, ब्रह्मचर्य नित धरै, आरम्भको त्याग करै मन बच कायके। परिग्रह काज टारे अघ अनुमत छारें, खनिमित कृत टारे असत बनायकै। सब एकादश येह प्रतिमा जु शर्म गेह, धारै देशवती उर हरष बढ़ायके । दशन पतिमा अष्ट मूलगुण संग्रह कर, विशुन अभक्ष्य सबै परिहरे ॥ युत अष्टांग शुद्ध सम्यक्त, धरहिं प्रतिक्षा दरशन रक्त ॥ १ ॥ व्रत पतिमा स्वरूप अणुवतपन अतिचार विहीन, धारह जो पुन गुणवत तीन, शिक्षाप्रत संजुत जो सोय; व्रत प्रतिमा पर श्रावक होय ॥२॥
SR No.010386
Book TitleJinvani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kasturchand Chavda
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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