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________________ (३१) थ्या तिमिर मीटाय ॥ मे ॥ श्री० ॥१॥दोष सदित मुखडं में कीचूं, परनिंदा बढु गाय॥ मे० ॥ श्री० ॥२॥ परनारी निरखेसें नयणां, निर्म ल नांदी गिणाय ॥ मे ॥ श्री० ॥३॥ परपी डा चिंतिने चित्तमां, चित्त कयुं कुःखदाय ॥ मे ॥ श्री० ॥ ४॥ धन्य दृष्टि जेणें तुमने जो या, सुंदर तेह मनाय ॥ मे ॥ श्री० ॥५॥ध न रसना जिणेस्तुतिरस लीनो, तेह प्रमाण क राय॥ मे॥ श्री०॥६॥ धन्य हृदयकज तेढ नुं कहीये,जिनहंस लीयो रे बिगय॥ मेणा॥ ॥अथ षोडश श्रीशांतिनाथ जिनस्तवनं ॥ ॥शांतिजिन मूरति तोरी लागे मुने प्पारी रे॥ढुं नीर दिलमांधारी॥शांति ॥ ए दें शी॥ कंचन सम काया रे, शांतिनाथ कदा या रे, प्रणमुं हूँ तोरे पाया, तुम अजब ध्या न लगाया॥शांति ॥१॥ शांति वदन तुम सोदे रे, इंचं मन मोहे रे, तुम नयन युगल
SR No.010385
Book TitleJinendra Stuti Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages85
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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