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________________ ( १२ ) ण गायवा, शक्तिमान कुण थाय लाल रे ॥ जि म कल्पांत समुझनें, नुजाबलें न तराय लाल रे ॥ पद्म० ॥ २ ॥ तो पण तुम नक्ति थकी, स्त वना करूं महाराय लाल रे ॥ मृग मृगेंद्र समी प ज्युं, धाय बाल मन लाय लाल रे ॥ पद्म० ॥ ३ ॥ नाथ स्तुति करवाथकी, पाप सवी द य जाय लाल रे ॥ अंधकार जिम सूर्यना, कीर पोथी प्रपलाय लाल रे ॥ पद्म० ॥ ४ ॥ एम जाणी स्तवना करो, नवि तुमें चतुर सुजाण ला ल रे ॥ पद्मनपद पंकजें, हंस परें करो गण लाल रे ॥ पद्म० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ अथ सप्तम श्रीसुपार्श्वनायजिनस्तवनं ॥ ॥ शांति वदन कज देख नयन मधुकर म न लीनो रे ॥ ए देश ॥ सेवो सुपार्श्व जिन देव, आज तुम नाव घणेथी रे ॥ ना० ॥ इदवाकु कुलनये अवतार, मघवादिक मन दर्ष पार || हेमादिपर स्नात्र सार करता भक्तिथी रे ॥ "
SR No.010385
Book TitleJinendra Stuti Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages85
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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