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________________ (५) ॥ नवजा बंद ॥ लसत्प्रकृष्टोज्ज्वलवजतुल्य, रदप्रनोजासि तसन्यवर्गः ॥ प्रनावरम्यं विमलं करोतु, जिनाधिनाथोविमलानिधोमाम् ॥१३॥ अर्थः-शोलायमानअत्यंत उज्ज्वल हीरासमान दांतो नी कांतिथी सनाना वर्गने प्रकाश आपनार,विमलना मना जिनेश्वर,मने प्रनावथी सुंदर तथा निर्मल करो॥ अनंतविझानमनंतनाथं, नमामि नत्त्या कृ तपापमाथम् ॥ वरोदयं श्रीजगदेकनाथ, मनंतसारातिशयाधिनाथम् ॥ २४ ॥ अर्थः-अपार झानवाला, पापोने नाश करनार, उत्तम उदयवाला शोनाथी युक्त जगत्ना एक नाथ अने अनंतसाररूप अतिशयोना स्वामी, अनंतनाथ नगवाननें दुं नक्तिथी नमस्कार करूं ॥१४॥ ॥रथोता बंद ॥ स्तौमि सक्थिवरवचलाउन,मूर्तधर्ममिव धर्मनामकम् ॥ पर्वते दरिमिवाशनिश्रि तं, गर्वपर्वतचयप्रणाशकम् ॥ १५ ॥
SR No.010385
Book TitleJinendra Stuti Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages85
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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