SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निश्चयनय : भेद-प्रभेद ] [७७ तथा जहाँ अकेले 'निश्चयनय' शब्द का ही प्रयोग हो, तो उसकी सीमा में अशुद्धनिश्चयनय के भी आजाने से, हमे उसका भी ध्यान रखना होगा। उक्त उद्धरण में एक बात और भी महत्त्व की आगई है। वह यह कि शुद्धनिश्चयनय की अपेक्षा अशुद्धनिश्चयनय भी व्यवहारनय ही है। इससे यह भी जान लेना चाहिए कि यदि कही यह कथन भी मिल जावे कि रागादिभाव व्यवहारनय से जीव के हैं, तो भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि उन्हें यहाँ जीव के अशुद्धनिश्चयनय से कहा है। जहाँ अशुद्धनिश्चयनय को व्यवहार कहा जावेगा, वहाँ इन्हें भी व्यवहार से जीवकृत कहा जावेगा। बात यहाँ तक ही समाप्त नही होती, क्योंकि जब शुद्धनिश्चयनय की अपेक्षा से अशुद्धनिश्चयनय व्यवहार हो जाता है; तो शुद्धनिश्चयनय के प्रभेदों में भी ऐसा ही क्यों न हो? अर्थात् ऐसा होता ही है। परमशुद्धनिश्चयनय की अपेक्षा साक्षात् शुद्धनिश्चय एव एकदेशशुद्धनिश्चयनय भी व्यवहार ही कहे जाते है। इसप्रकार हम देखते है कि निश्चयनय के भेद-प्रभेदो के कथन का 'निश्चयनय के भेद तो हो ही नही सकते, वह तो एक प्रकार का ही होता है' - इस कथन से कोई विरोध नही रहता है; क्योकि वास्तविक निश्चयनय तो एक ही रहा, शेष को तो विवक्षानुसार कभी निश्चय और कभी व्यवहार कह दिया जाता है। एकमात्र परमभावग्राही- सामान्यग्राही परमशुद्धनिश्चयनय ही ऐसा है कि जो कभी भी व्यवहारपने को प्राप्त नही होता, उसके कोई भेद नही होते; अतः वास्तविक निश्चयनय तो अभेद्य ही रहा। भाई ! हमने पहले भी कहा था कि जिनेन्द्र भगवान का नयचक्र बड़ा ही जटिल है, उसे समझने मे अतिरिक्त सावधानी वर्तने की अत्यन्त आवश्यकता है। इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि यद्यपि जिनागम का सम्पूर्ण कथन नयों के आधार पर ही होता है, पर सर्वत्र यह उल्लेख नही रहता कि यह किस नय का कथन है ? अतः हमें यह तो अपनी बुद्धि से निर्णय करना होगा कि यह किस नय का कथन है। अतः जिनागम का मर्म जानने के लिए आगम के आधार के साथ-साथ जागृत विवेक की आवश्यकता भी कदम-कदम पर है।
SR No.010384
Book TitleJinavarasya Nayachakram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1982
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy