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________________ निश्चयनय : भेद-प्रभेद ] [ ७५ निश्चयनय शुद्धनिश्चयनय अशुद्धनिश्चयनय परमशुद्धनिश्चयनय शुद्धनिश्चयनय एकदेशशुद्धनिश्चयनय उक्त चार्ट में विशेष ध्यान देने की बात यह है कि 'शुद्धनिश्चयनय' के तीन भेदों में एक का नाम तो 'शुद्धनिश्चयनय' ही है। इससे यह सिद्ध होता है कि 'शुद्धनिश्चयनय' शब्द का प्रयोग कभी तो तीनों भेदों के समुदाय के रूप में होता है और कभी उनके एक भेदमात्र के रूप में। इस मर्म से अनभिज्ञ रहने से जिनवाणी के अध्ययन में अनेक विरोधाभास प्रतीत होने लगते हैं। जैसे-परमात्मप्रकाश, अध्याय १, दोहा ६४ की टीका में लिखा है : "अनाकुलत्वलक्षणपारमाथिकवीतरागसौख्यात प्रतिकलं सांसारिकसुखदुःखं यद्यप्यशुद्धनिश्चयनयेन जीवजनितं तथापि शुद्धनिश्चयनयेन कर्मजनितं भवति । ___ अनाकुलता है लक्षण जिसका ऐसे पारमार्थिक वीतरागी सुख से प्रतिकूल सांसारिक सुख-दुःख यद्यपि अशुद्धनिश्चयनय मे जीवजनित हैं, तथापि शुद्धनिश्चयनय से कर्मजनित होते है।" तथा बृहद्रव्यसंग्रह, गाथा ४८ की टोका मे इसप्रकार लिखा है : "पत्राह शिष्यः, रागद्वेषादयः किं कर्मजनिताः किं जीवजनिता इति ? तत्रोत्तरम्-स्त्री-पुरुषसंयोगोत्पन्नपुत्र इव सुधाहरिद्रासंयोगोत्पन्नवर्णविशेष इवोमयसंयोगजनिता इति । पश्चान्त्रयविवक्षावशेन विवक्षितकदेशशुद्धनिश्चयेन कर्मजनिता भण्यन्ते । तथैवाशुद्धनिश्चयेन जीवजनिता इति । स चाशुद्धनिश्चयः शुद्धनिश्चयापेक्षया व्यवहार एव । अथ मतम् - साक्षाच्छुचनिश्चयनयेन कस्येति पृच्छामो वयम् । तत्रोत्तरम् - साक्षाच्छु निश्चयेन स्त्री-पुरुषसंयोगरहितपुत्रस्येव, सुधाहरिद्रासंयोगरहितरङ्गविशेषस्येव तेषामुत्पत्तिरेव नास्ति कथमुत्तरं प्रयच्छाम इति । ___ यहाँ शिष्य पूछता है :- रागद्वेष आदि कर्मजनित हैं अथवा जीवजनित?
SR No.010384
Book TitleJinavarasya Nayachakram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1982
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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