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________________ निश्चय-व्यवहार : कुछ प्रश्नोत्तर ] [ ६५ तीर्थकर भगवान महावीर का तीर्थ आज भी प्रवर्तित है, क्योंकि उनकी वाणी में निरूपित शुद्धात्मवस्तु का अनुभव ज्ञानीजन आज भी करते हैं - यह व्यवहार और निश्चय की अद्भुत संधि है। अनुभव की प्रेरणा की देशनारूप व्यवहार और अनुभवरूप निश्चय की विद्यमानता ही व्यवहार-निश्चय को नही छोड़ने की प्रक्रिया है, जिसका आदेश उक्त गाथा में दिया गया है। दूसरे प्रकार से विचार करे तो मोक्षमार्ग की पर्याय को तीर्थ कहा जाता है तथा जिस त्रिकाली ध्र व निज शुद्धात्मवस्तु के आश्रय से मोक्षमार्ग की पर्याय प्रगट होती है, उसे तत्त्व कहते है। अतः व्यवहार को नही मानने से मोक्षमार्गरूप तीर्थ और निश्चय को नहीं मानने से निज शुद्धात्मतत्त्व के लोप का प्रसंग उपस्थित होगा। इस संदर्भ में इस सदी के सुप्रसिद्ध प्राध्यात्मिक सत्पुरुष श्री कानजी स्वामी के विचार दृष्टव्य हैं : "जिनमत अर्थात् वीतराग अभिप्राय को प्रवर्तन कराना चाहते हो तो व्यवहार और निश्चय दोनों नयों को मत छोड़ो। 'व्यवहार नही हैऐसा मत कहो । व्यवहार है, किन्तु गाथा ११ में जो असत्य कहा है, वह त्रिकाल ध्र व निश्चय की विवक्षा में गौण करके असत्य कहा है, बाकी व्यवहार है, मोक्ष का मार्ग है । व्यवहारनय न मानो तो तीर्थ का नाश हो जायेगा। चौथे, पाँचवें, छठवे आदि चौदह गरणस्थान जो व्यवहार के विषय है, वे हैं। मोक्ष का उपाय जो सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र है, वे व्यवहार है । चौदह गुणस्थान द्रव्य में नही है, यह तो ठीक, किन्तु पर्याय में भी नहीं है, ऐसा कहोगे तो तीर्थ का ही नाश हो जायेगा । तथा तीर्थ का फल जो मोक्ष और सिद्धपद है, उसका भी प्रभाव हो जायेगा । ऐसा होने पर जीव के संसार और सिद्ध - ऐसे जो दो विभाग पड़ते है, वह व्यवहार भी नही रहेगा। भाई, बहुत गंभीर अर्थ है। भाषा तो देखो! यहाँ मोक्षमार्ग की पर्याय को 'तीर्थ' कहा और वस्तु को 'तत्त्व' कहा है। त्रिकालीध्र व चैतन्यघन वस्तु निश्चय है । उस वस्तु को जो नहीं मानेगे तो तत्त्व का नाश हो जाएगा। और तत्त्व के अभाव में, तत्त्व के प्राश्रय से उत्पन्न हुना जो मोक्षमार्गरूप तीर्थ, वह भी नहीं रहेगा। इस निश्चयरूप वस्तू को नहीं मानने से तत्त्व का और तीर्थ का दोनों का नाश हो जायेगा, इसलिए वस्तुस्वरूप जैसा है, वैसा यथार्थ मानना।
SR No.010384
Book TitleJinavarasya Nayachakram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1982
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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